एक मुर्दे का बयान

1 min read
कविता : एक मुर्दे का बयान श्रीकांत वर्मा

मैं एक अदृश्य दुनिया में, न जाने क्या कुछ कर रहा हूँ।
मेरे पास कुछ भी नहीं है-
न मेरी कविताएँ हैं, न मेरे पाठक हैं
न मेरा अधिकार है
यहाँ तक कि मेरी सिगरटें भी नहीं हैं।
मैं ग़लत समय की कविताएँ लिखता हुआ
नकली सिगरेट पी रहा हूँ।
मैं एक अदृश्य दुनिया में जी रहा हूँ
और अपने को टटोल कह सकता हूँ
दावे के साथ
मैं एक साथ ही मुर्दा भी हूँ और ऊदबिलाव भी।
मैं एक बासी दुनिया की मिट्टी में
दबा हुआ
अपने को खोद रहा हूँ।

मैं एक बिल्ली की शक्ल में छिपा हुआ चूहा हूँ
औरों को टोहता हुआ
अपनों में डरा बैठा हूँ
मैं अपने को टटोल कह सकता हूँ दावे के साथ
मैं ग़लत समय की कविताएँ लिखता हुआ
एक बासी दुनिया में
मर गया था।

मैं एक कवि था। मैं एक झूठ था।
मैं एक बीमा कम्पनी का एजेन्ट था।
मैं एक सड़ा हुआ प्रेम था
मैं एक मिथ्या कर्त्तव्य था
मौक़ा पड़ने पर नेपोलियन था
मौक़ा पड़ने पर शहीद था।

मैं एक ग़लत बीबी का नेपोलियन था।
मैं एक
ग़लत जनता का शहीद था!

श्रीकांत वर्मा
+ posts

श्रीकांत वर्मा (1931 – 1986) गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं. आप ‘मगध’ काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए.

श्रीकांत वर्मा (1931 – 1986) गीतकार, कथाकार तथा समीक्षक के रूप में जाने जाते हैं. आप ‘मगध’ काव्य संग्रह के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए.

नवीनतम

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो

कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन

भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से