राहुल तोमर की कविताएँ

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1) किक्की के लिए तुम्हें बढ़ते हुए देखने से ज़्यादा सुखद मेरे लिए और कुछ नहीं परन्तु तुम ऐसे वक़्त में बड़ी हो रही हो मेरी बच्ची जब मानवता की हांफनी छूटी

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क्या कहती हो

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उस शाम के मुहाने पे उस शब के सिरहाने से वादियों के ख़ामोशी में पेड़ों के सरसराहट से सरकती हुई तुम्हारी मुस्कुराहट बोलों के बीच तुम्हारी मीठी सी सांस की आवाज़ जावेदां

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एकता सिरीकर की कविताएँ

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1. प्रेम लिपि तुम्हारी दैहिक शुचिता को दैविकता मानकर; क्षण-क्षण ठगा जाना, स्वीकार किया मैंने! मैं हारती चली गई ; तुम जीतते गए हर बार! सर्वस्व अर्पण, समर्पण; मेरे प्रेम की लिपि

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कविताएँ : राकेश मलिक

1. प्रेम परिवर्तन ला देता है उद्दंडता को दुख से भर देता है और फिर गाँव के सबसे बदतमीज लड़के बिल्कुल शांत हो जाते हैं विश्व भर में शांति के लिए प्रेम

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