फूल आए हैं कनेरों में

नवगीत विधा के वरिष्ठ कवि माहेश्वर तिवारी से मेरा बादरायण संबंध है। इस संबंध के बारे में शायद आप नहीं जानते होंगे। यह संस्कृत के विद्वत्‌ समाज का एक प्रचलित शब्द है,

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नयी कविता : प्रयोग के आयाम

तार सप्तक की भूमिका प्रस्तुत करते समय इन पंक्तियों के लेखक में जो उत्साह था, उस में संवेदना की तीव्रता के साथ निःसन्देह अनुभवहीनता का साहस भी रहा होगा। संवेदना की तीव्रता

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नयी कविता एवं मेरी रचना प्रक्रिया

यह विषय मेरे लिए नया है। कोई सोच नहीं सकता कि वह किस तर्ज से लिखता है। आधुनिक काव्य की जो रचना-प्रक्रिया है उस पर निर्णय लेना पाठकों का कार्य है। आधुनिक

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बबूल

बोया पेड़ बबूल का, आम कहाँ से होय?’ जिसने पहली-पहली बार ऐसा कहा होगा, उसका मन फलों के राजा के रस से आप्लावित रहा होगा। रहना भी चाहिए। वह कौन है, जिसे

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आपने मेरी रचना पढ़ी?

हमारे साहित्यिकों की भारी विशेषता यह है कि जिसे देखो वहीं गम्भीर बना है, गम्भीर तत्ववाद पर बहस कर रहा है और जो कुछ भी वह लिखता है, उसके विषय में निश्चित

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धोखा

इन दो अक्षरों में भी न जाने कितनी शक्ति है कि इनकी लपेट से बचना यदि निरा असंभव न हो तो भी महा कठिन तो अवश्य है। जबकि भगवान रामचंद्र ने मारीच

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मौन

स्थगित कर दूँ क्या अभी अभिव्यक्ति का आग्रह, न बोलूँ, चुप रहूँ क्या?’ क्यों? कहिए, न बोलूँ, चुप रहूँ क्या? किंतु आप कहें कि ‘धन्यवाद, चुप रहिए’ तो उससे भी क्या? आपका

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जैसा समाज होगा वैसा परिवार

हम जानते हैं कि जब समाज अपनी प्रारंभिक अवस्था में था तो परिवार की शुरुआती अवधारणाएँ और परिणतियाँ अपने मूल व्यवहार में तमाम आडंबरों से रहित थीं। उनमें खुलापन, आजादी और यायावरी

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आधुनिक कहानी की रचना संस्कृति

शहरज़ाद के नाम मेरी कहानी इन दिनों मुश्किल में है। जब लिखने बैठता हूँ तो अदबदाकर कोई वारदात गुजर जाती है। खबर मिलती है कि फुलाँ मस्जिद पर दहशतगर्दों ने हल्ला बोल

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