मुझे बचपन से नक़्शे देखने का शौक़ है। आप समझेंगे कि कुछ भूगोल विज्ञान की तरफ़ प्रवृत्ति होगी – नहीं, सो बात नहीं; असल बात यह है कि नक्शों के सहारे दूर-दुनिया
हम भारतीय न जाने किस मिट्टी के बने हैं ? बहुत बार बहुतों को यह कहते हुए सुना। शायद इसका कारण हमारे बहुत से गुण और बहुत से अवगुण दोनों ही हैं। हमारी
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Moreबाईस घंटे में मुझे प्रायः आठ सौ मील की यात्रा करनी है। बिजली के इंजिन से चालित रेलगाड़ी के लिए 37 मील प्रति घंटे की रफ्तार बहुत अधिक नहीं है, लेकिन इन
Moreठेले पर हिमालय’ – खासा दिलचस्प शीर्षक है न। और यकीन कीजिए, इसे बिलकुल ढूँढ़ना नहीं पड़ा। बैठे-बिठाए मिल गया। अभी कल की बात है, एक पान की दूकान पर मैं अपने
Moreप्रयाग : 1976 मुँह अँधेरे सीटी सुनाई देती है-घनी नींद में सुराख बनाती हुई-एक क्षण पता नहीं चलता, मैं कहाँ हूँ, किस जगह हूँ, कौन-सा समय है? आँखें खुलती हैं, तो ढेस-सा
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