पूरे चालीस घण्टे की लम्बी और ऊबभरी यात्रा का अन्त डेढ़ बजे दिन में दादर स्टेशन पर हुआ। प्लेटफार्म पर पैर रखते ही सूचना मिली के ‘तीसरी कसम’ की शूटिंग कमाल स्टूडियो
क्या यह कयामत का दिन है? ज़िंदगी के कई वे पल, जो वक्त की कोख से जन्मे और वक्त की कब्र में गिर गये, आज मेरे सामने खड़े हैं… ये सब कब्रें
More‘निराला’ जी को स्मरण करते हुए एकाएक शांतिप्रिय द्विवेदी की याद आ जाए, इसकी पूरी व्यंजना तो वही समझ सकेंगे जिन्होंने इन दोनों महान विभूतियों को प्रत्यक्ष देखा था। यों औरों ने
Moreपूरे चालीस घण्टे की लम्बी और ऊबभरी यात्रा का अन्त डेढ़ बजे दिन में दादर स्टेशन पर हुआ। प्लेटफार्म पर पैर रखते ही सूचना मिली के ‘तीसरी कसम’ की शूटिंग कमाल स्टूडियो
Moreयहाँ (बंबई में) कई दोस्त मिले जिनके साथ अच्छी-बुरी गुजरी। कृष्ण चंदर, भारती, कमलेश्वर, जो शुरू ही में ये न मिल गए होते तो बंबई में मेरा रहना असंभव हो जाता। शुरू
Moreएक अजीब हादसा हुआ है। मंटो मर गया है, गो वह एक अर्से से मर रहा था। कभी सुना कि वह एक पागलखाने में है, कभी सुना कि यार दोस्तों ने उससे
Moreएक युग बीत जाने पर भी मेरी स्मृति से एक घटा भरी अश्रु- मुखी सावनी पूर्णिमा की रेखाएँ नहीं मिट सकी हैं। उन रेखाओं के उजले रंग न जाने किस व्यथा से
Moreरवींद्र कालिया से मेरी पहली भेंट सन 1963 में इलाहाबाद में हुई थी। परिमल के लोगों ने एक कहानी गोष्ठी की थी। उसमें कालिया और गंगा प्रसाद विमल दोनों आए थे। तब
Moreमैं हिंदी के उन खुशनसीब लेखकों में हूँ, जिसने श्रीलाल जी के साथ जम कर दारू पी है, डाँट खायी है और उससे कहीं ज्यादा स्नेह पाया है। जाने मुझ पर क्या
More