श्रीचरणकमलेषु, आज हमारे विवाह को पंद्रह वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक मैंने कभी तुमको चिट्ठी न लिखी। सदा तुम्हारे पास ही बनी रही – न जाने कितनी बातें कहती सुनती रही,
1. लोलार्क कुंड, भदैनी वाराणसी-1 1 मई 1957 प्रिय भाई मुक्तिबोध जी, आज रात विष्णु ने आपका पत्र दिया। देर रात तक उसे पढ़ता रहा अर्थात् लिखी हुई पंक्तियों के बीच में
More(फाँसी की सज़ा सुनने के बाद मुलतान जेल में बंदी अपने साथी बटुकेश्वर दत्त के नाम नवम्बर, १९३० का भगतसिंह का पत्र) सेंट्रल जेल, लाहौर नवम्बर, 1930 प्यारे भाई, मुझे दंड सुना
Moreश्रीचरणकमलेषु, आज हमारे विवाह को पंद्रह वर्ष हो गए, लेकिन अभी तक मैंने कभी तुमको चिट्ठी न लिखी। सदा तुम्हारे पास ही बनी रही – न जाने कितनी बातें कहती सुनती रही,
Moreतुम कहोगे कि छि: इतनी स्वार्थ-परायणता! पर प्यारे, यह स्वार्थ-परायणता नहीं है, यह सच्चे हृदय का उद्गार है, फफोलों से भरे हृदय का आश्वासन है, व्यथित हृदय की शान्ति है, आकुलता भरे
Moreपटना 09-11-58 मान्यवर जयप्रकाशजी, प्रणाम! मानवीय गुणों पर जोर देते हुए आपने अभी हाल में जो बयान दिया है उसकी कतरन मैंने पास रख ली है और उसे कई बार पढ़ गया
Moreडी.ए.वी. कॉलेज, जालंधर 13-5-55 माई डियर राजेन्द्र यादव, दोस्त उपन्यास की पांडुलिपि भेजने में दो दिन की देरी हो ही गई, जो अपनी आदतों को देखते हुए बहुत कम है। ख़ैर, पार्सल
More[टैगोर के पत्र https://www.ummeedein.com/rabindranath-tagore-ka-patra-sharatchandra-ke-naam/ के उत्तर में शरतचंद्र ने कवि को जो पत्र लिखा उसके शब्द-शब्द से आक्रोश टपका पड़ता है। संयम जैसे हाथ से छूट गया है। अच्छा यही था कि
More[शरतचंद्र की किताब ‘पथेर दाबी’ पे अपना मत व्यक्त करते हुए रबीन्द्रनाथ टैगोर का पत्र] कल्याणयेषु ! तुम्हारा ‘पथेर दाबी’ पढ़ लिया। पुस्तक उत्तेजक है, अर्थात् अंग्रेज़ी शासन के विरुद्ध पाठकों के
Moreअन्नो जानी ! तुम्हारा ख़त मिला। पाकिस्तान के हालात पढ़ कर कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई। यहां भी इसी क़िस्म के हालात चल रहे हैं। शायरों और अदीबों ने मर मर कर
Moreसम्माननीय सर… मैं जानता हूँ कि इस दुनिया में सारे लोग अच्छे और सच्चे नहीं हैं। यह बात मेरे बेटे को भी सीखनी होगी। पर मैं चाहता हूँ कि आप उसे यह
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