गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला

गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी

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नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं मुलाक़ातों पे हँसते, बोलते हैं, मुस्कराते हैं तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं खुले

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अत्यंज कोरी पासी हैं हम

अत्यंज कोरी पासी हैं हम क्यूँ कर भारतवासी हैं हम अपने को क्यों वेद में खोजें क्या दर्पण विश्वासी हैं हम छाया भी छूना गर्हित है ऐसे सत्यानाशी हैं हम धर्म के

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बहुत बेज़ार होती जा रही हूँ

बहुत बे-ज़ार होती जा रही हूँ मैं ख़ुद पर बार होती जा रही हूँ तुम्हें इक़रार के रस्ते पे ला कर मैं ख़ुद इंकार होती जा रही हूँ कहीं मैं हूँ सरापा

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