इश्क़ के आबो हवा में इतमिनानी और थी
ये कहानी और थी ज़िंदग़ानी और थी
ख़लवतों का दौर आया होके उनसे मुतमईन
ज़िन्दग़ी के कारवाँ की बेनिशानी और थी
रख सके न और कुछ तो दामनों में मैल था
और अज़ीज़ों के वतन में बेज़ुबानी और थी
हाय फूटा सर तो सर से पाओं तक ख़ूँ ही सही
दिल में उनके कुछ था आँखे पानी पानी और थी
मैकदे में जाके साक़ी से मरासिम न रहे
छोड़ो जी बातें ये वो तो लंतरानी और थी
और बिस्मिल मक़्तलों में जाके सजदे कर रहा
कोई हमसे कह रहा मस्जिद रूहानी और थी
बेवजह हमने गुजारी ज़िन्दगी यूँ उम्र भर
क्या वजह क्या बेवजह क्या यूँ भी यानी और थी
बेमुरव्वत आ गया फिर घूम के दौर-ए-जेह्ल
उसपे उनकी दीनदारी बेईमानी और थी
हाय किसना किसना वालों क्यों सुदामा रो रहा
दोस्ताना और था यारी निभानी और थी
हम तो जब भी थे मिले अख़लाक़मंदी से मिले
उनका सब बतौर था पर बदगुमानी और थी
तुम तो करते थे रहे हर बात का हमसे गिला
और हम ईमान वालों की पशेमानी और थी
एक को सुलझाएँ क्या है इतनी सारी उलझनें
सुलझे तो उलझाए फिर परेशानी और थी
हम तो कबके मर चुके थे उन्होंने जिला दिया
आख़िरी से पहले हमको मौत आनी और थी
वो जवाँ-ए-हुस्न पर इतरा के यूँ ऐंठा किये
अपने घर में ख़ूबसूरत दादी नानी और थी
तुमको क्या मालूम तुमने थी उड़ाई भी पतंग
ढील देना और था कन्नी फसानी और थी
मुख़्तसर सी बात है ग़ाफ़िल ये ग़फ़लत में नहीं
होश वाले बेख़बर थे बात यानी और थी

शारिक़ असीर
शारिक़ असीर मुज़फ़्फ़रपुर, बिहार से हैं। आप अपने समय के उभरते हुए समर्थ शायरों में से एक हैं। आपसे shariqueasir@gmail.com पे बात की जा सकती है।