मैंने पहली बार महसूस किया है कि नंगापन अन्धा होने के खिलाफ़ एक सख्त कार्यवाही है उस औरत की बगल में लेटकर मुझे लगा कि नफ़रत और मोमबत्तियाँ जहाँ बेकार साबित हो
कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती हूँ रूखी-सूखी कहीं कमज़ोर न हो जाऊँ पीती हूँ फलों का रस अपनी देह का ख़याल
Moreमेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही थी पसीने की बू तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी साँसों में थी, बस, जीवन-गन्ध
Moreहमारी रीढ़ मुड़ चुकी है “मैं” के बोझ से खड़े होने की कोशिश में औंधे मुंह गिर जाएंगे, खड़े होने की जगह पर खड़ा होना ही मनुष्य होना है। हमने मनुष्यता की परिभाषा चबाई
Moreतुम्हें ढोना है समय का भार, थोड़ी सी चाल तेज करो थोड़ी और तेज, और तेज यार, थोड़ी सी चाल तेज करो हाथ जो मिला था इन्कलाब के लिये, कुर्सी के लिए
Moreतुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो हमारे ये दीवार थी पारदर्शी इसे वक्त ने कर दिया शब्द तुम ले चली गुनगुनाते हुए
Moreस्वप्न में तुम हो तुम्हीं हो जागरण में कब उजाले में मुझे कुछ और भाया, कब अंधेरे ने तुम्हें मुझसे छिपाया, तुम निशा में औ’ तुम्हीं प्रात: किरण में; स्वप्न में तुम
Moreनावों ने नदियों का साथ कभी नहीं छोड़ा बेतवा को अमावस में जब पार किया तो जान पड़ी बिल्कुल अकेली एक छोटी सी नाव नदी के साथ डोल रही थी आत्मा पर
Moreभाषा कई बार बिलकुल असहाय हो जाती है कभी-कभी ग़ैरज़रूरी और हास्यास्पद भी बिना बोले भी आख्यान रचा जा सकता है मौन संवाद का सर्वोत्तम तरीका है भाषा केवल शब्दों का समुच्चय
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