समुद्र पर हो रही है बारिश

क्या करे समुद्र क्या करे इतने सारे नमक का कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं क्या पता कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं फिर भी

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सावन में

ऐसा क्या कुछ हुआ कि तुमने आनन फानन में इंद्रधनुष भर डाले सारे नभ के आँगन में जीवन जल की झील लबालब नभ के आँगन में झूम रहा है नंदन कानन नभ

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जाल फेंक रे मछेरे

एक बार और जाल फेंक रे मछेरे जाने किस मछली में बंधन की चाह हो! सपनों की ओस गूँथती कुश की नोक है हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है रेत के

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प्रेम में लड़की शोक करती है

प्रेम में लड़की शोक करती है शोक में लड़की प्रेम करती है प्रेम में लड़की नाम रखती है नाम जिसका रखती है माया है वह माया, जिसकी इच्छा उसकी नींद में चलती

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कोई कहे या न कहे

यह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे। सपने अपने झर जाने दे, झुलसाती लू को आने दो पर उस अक्षोभ्य तक केवल मलय समीर बहे। यह विदा का गीत कोई

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प्यार मेरे

सुधियों में गुंजारित किसी मंत्र सरीखा तुम्हारा विह्वल स्वर मेरी आत्मा की साँकलें बजाता है निरंतर सुनो! मेरी देह की एकांतिक भूमि पर चाहो तो रख सकते हो हाथ तुम आत्मा के

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सारा दिन

तुम्हारी आँखें कुछ बोलती रहीं आज सारा दिन सूरज मेरे कंधे पर सवार रहा आज सारा दिन खूँटी से टँगे कोट में सारी रात चाय की एक चुस्की ठिठुरती रही दीवार पर

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मैं तुम लोगों से दूर हूँ

मैं तुम लोगों से इतना दूर हूँ तुम्हारी प्रेरणाओं से मेरी प्रेरणा इतनी भिन्न है कि जो तुम्हारे लिए विष है, मेरे लिए अन्न है। मेरी असंग स्थिति में चलता-फिरता साथ है,

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क्या पता किस बात का दुःख रहा

जो नहीं हुआ दुःख उसका नहीं जो हुआ उसका दुःख है उसका दुःख घेरे है जो हो रहा है उसके बाहर घेरे है बहुत बड़ी दुनिया में एक छोटा-सा कंकड़ हिलकर रह जाता

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अकथ कथा

ये वो क़िस्सा है जिसमें घुस के रात सोती है ये वो क़िस्सा है जिसमें दिन के छाँव मिलती है ये वो क़िस्सा है जिसमें हमको तुमको मिलना था ये वो क़िस्सा

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