प्रेम में लड़की शोक करती है
शोक में लड़की प्रेम करती है
प्रेम में लड़की नाम रखती है
नाम जिसका रखती है
माया है वह
माया, जिसकी इच्छा उसकी नींद में चलती है,
कभी वह इस माया को
पुकारती है बाबा कहकर
कभी कहती है
मनु, ओ मनु
कभी सोचने लगती है
कोई बिल्कुल नया नाम!
जानती है वह
चाहे किसी भी नाम से पुकार ले उसे
बचेगा हर नाम हवा का आकार भर
इसी शोक से बचने के लिए
प्रेम करती है लड़की
प्रेम करते हुए लड़की सोचती है,
वह सुरक्षित है विस्मृति में,
लालसा में, स्वार्थ में
याद नहीं रहता उसे
कि लालसा है जिसके लिए
ढेर है वह
मुट्ठी-भर हड्डियों का,
हड्डियाँ, जो निकल आती हैं
बिजली की भट्ठी से बाहर
सिर्फ़ पाँच मिनट बाद
प्रेम करते हुए लड़की कुछ भी नहीं सोचती
बस अपनी भारी साँस
ले जाती है उसके सीने के पास
सूँघती है उसकी मांस, मज्जा
और आत्मा?
यहीं कहीं तो थी उसकी आत्मा?
कब छू पाएगी उसे वह
इस मुट्ठी भर कंकाल के भीतर?
इसी शोक में लड़की
प्रेम करती है
वहशत की हद तक
हर बार उसे लगता है
अब के दीखने बंद हो जाएँगे
उसे ज़िंदा आदमियों के जलते कंकाल,
अबके वह जिसे छुएगी
वह सुख होगा—
ख़ालिस सुख
हर बार वह डरकर
आदमी को जकड़ती है,
हर बार वह उससे
किसी जलती भट्ठी में छूट जाता है
शोक में लड़की प्रेम करती है
ऐसा प्रेम, ख़ुदा जिससे
दुश्मनों को भी बचाए!
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गगन गिल
गगन गिल (जन्म- 1959, नई दिल्ली) आधुनिक हिन्दी कवियित्रियों में से एक हैं। गगन गिल को 'भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार', 'संस्कृति पुरस्कार' और 'केदार सम्मान' से सम्मानित किया जा चुका है।