पृथ्वी कितनी छोटी थी
जब हमारे पास
मिलने की आकांक्षा थी।
आकांक्षाएं सिमटती रहीं
और एक दिन
बहुत दूर हो गए हमसे
हमारे ही शहर।
एक तरह का अजनबीपन
बस गया है इधर,
पृथ्वी पर रिक्तता
बढ़ती ही जा रही।
यह शहर अब अजायबघर है
पृथ्वी के केंद्र में,
जिसमें सुरक्षित हैं चंद दिन
जो बचा लिए मैंने
तुमसे अलग होने की त्रासदी से पहले।

रवि तिवारी
रवि तिवारी अल्मोड़ा, उत्तराखंड से हैं. आप हिंदी भाषा के विद्यार्थी हैं. आपकी रचनाएँ ही आपकी पहचान हैं. आपसे ravi.tewari4@gmail.com पे बात की जा सकती है.