भाषा कई बार बिलकुल असहाय हो जाती है
कभी-कभी ग़ैरज़रूरी और हास्यास्पद भी
बिना बोले भी आख्यान रचा जा सकता है
मौन संवाद का सर्वोत्तम तरीका है
भाषा केवल शब्दों का समुच्चय नहीं है
और किसी लिपि की मोहताज भी नहीं
जैसे फूल क्यारियों में खिलते हैं और हृदय में खिलखिलाते हैं
वैसी भी तो हो सकती है भाषा
मौन कितना मुखर हो सकता है
फूल से बेहतर कोई और नहीं समझा सकता
सुगंध हवा की लिपि में लिखित फूल की भाषा है।

लल्लन चतुर्वेदी
लल्लन चतुर्वेदी बैंगलोर से हैं. आपकी कविताएँ ही आपकी पहचान हैं. आपसे lalancsb@gmail.com पे बात की जा सकती है.