नाव नदी की आँखों जैसी लगती हैं

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नावों ने नदियों का साथ कभी नहीं छोड़ा
बेतवा को अमावस में जब पार किया तो जान पड़ी बिल्कुल अकेली
एक छोटी सी नाव नदी के साथ डोल रही थी
आत्मा पर जो एक भार था वह जैसे कम हो गया
अकेलापन किसी का भी हो भला नहीं लगता
चंबल नदी में नाव का नाविक जो गीत गा रहा था
उसका चेहरा नदी के बेटे की तरह था
नर्मदा में कईं बार नावों को देखा और इस तरह नर्मदा तक गया कई बार
गंगा को अकेले बहते हुए नहीं देखा है कभी
बनारस और पटना में गंगा को कोई छू सकता है
एक नाव पर यात्रा कर
नदियों को याद करते हुए नाव याद आते हैं
जैसे
तुम्हें याद करते हुए घर की याद आती है
हमारा घर भी एक छोटा सा नाव है
जो डोलता रहता है तुम्हारी हँसी की नदी में

 

रोहित ठाकुर
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रोहित ठाकुर पटना, बिहार से हैं। आप देश के माने हुए साहित्यकारों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे rrtpatna1@gmail.com पे बात की जा सकती है।

रोहित ठाकुर पटना, बिहार से हैं। आप देश के माने हुए साहित्यकारों में से एक हैं। आपकी रचनाएँ समय समय पर देश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे rrtpatna1@gmail.com पे बात की जा सकती है।

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