आप की याद आती रही रात भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात भर
गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम्म’ए-ग़म झिलमिलाती रही रात भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात भर
फिर सबा साया-ए-शाख़े-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात भर
जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात भर
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात भर

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ (1911 - 1984) भारतीय उपमहाद्वीप के एक विख्यात शायर थे, जिन्हें अपनी क्रांतिकारी रचनाओं में इंक़लाबी और रूमानी मेल की वजह से जाना जाता है। सेना, जेल तथा निर्वासन में जीवन व्यतीत करने वाले फ़ैज़ ने कई नज़्में और ग़ज़लें लिखी तथा उर्दू शायरी में आधुनिक प्रगतिवादी (तरक्कीपसंद) दौर की रचनाओं को सबल किया। उन्हें नोबेल पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया गया था। उनकी कविता 'ज़िन्दान-नामा' को बहुत पसंद किया गया था। उनके द्वारा लिखी गई कुछ पंक्तियाँ अब भारत-पाकिस्तान की आम-भाषा का हिस्सा बन चुकी हैं, जैसे कि 'और भी ग़म हैं ज़माने में मुहब्बत के सिवा'।