फूलों ने दिए जख़्म तो काँटों से गिला क्या
क्या करना था अपनों से सुलूक और किया क्या
जब हाथ में शीशा था न सागर था न मीना
गर दिल नहीं टूटा है तो फिर छन से गिरा क्या
तुमने जो महकते हुए ये शेर कहे हैं
फिर कूचा-ए-जाना से कोई जख़्म मिला क्या
वो पूछते फिरते हैं मेरे बारे में सबसे
एक मेरा भी शायर है उसे तुमने सुना क्या
छाले थे अना थी कि वो ग़ैरत थी क्या था
जब फ़र्श था मख़मल का तो तलवों में चुभा क्या

नवाज़ देवबंदी
नवाज़ देवबंदी उर्दू ग़ज़ल के बड़े व मशहूर शायरों में से एक हैं। आपकी कई ग़ज़लों को जगजीत सिंह ने अपनी आवाज़ दी है।