फिर छिड़ी रात बात फूलों की

1 min read

फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की

फूल के हार, फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की

आपका साथ, साथ फूलों का
आपकी बात, बात फूलों की

नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की

कौन देता है जान फूलों पर
कौन करता है बात फूलों की

वो शराफ़त तो दिल के साथ गई
लुट गई कायनात फूलों की

अब किसे है दमाग़े तोहमते इश्क़
कौन सुनता है बात फूलों की

मेरे दिल में सरूर-ए-सुबह बहार
तेरी आँखों में रात फूलों की

फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की

ये महकती हुई ग़ज़ल ‘मख़दूम’
जैसे सहरा में रात फूलों की

मख़दूम मुहिउद्दिन

मख़दूम मोहिउद्दिन एक उर्दू कवि और मार्क्सवादी राजनीतिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने अपने जीवन काल में हैदराबाद में प्रोग्रेसिव राइटर्स यूनियन की स्थापना की और कॉमरेड एसोसिएशन और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के साथ सक्रिय रहे।

मख़दूम मोहिउद्दिन एक उर्दू कवि और मार्क्सवादी राजनीतिक कार्यकर्ता थे। उन्होंने अपने जीवन काल में हैदराबाद में प्रोग्रेसिव राइटर्स यूनियन की स्थापना की और कॉमरेड एसोसिएशन और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया के साथ सक्रिय रहे।

नवीनतम

मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो