वो आएगी हर ओर से

वो आएगी हर ओर से और तुम रोक न सकोगे उसका आना तय था इतिहास में कुलबुलाहट थी तुमने हर ग्रंथ में ख़ुद तय किया था कि वो उतरेगी सड़कों पर तुम्हारे

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पूँजीवादी समाज के प्रति

इतने प्राण, इतने हाथ, इतनी बुद्धि इतना ज्ञान, संस्कृति और अंतःशुद्धि इतना दिव्य, इतना भव्य, इतनी शक्ति यह सौंदर्य, वह वैचित्र्य, ईश्वर-भक्ति इतना काव्य, इतने शब्द, इतने छंद जितना ढोंग, जितना भोग

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आवाज़ दो हम एक हैं

एक है अपना जहाँ, एक है अपना वतन अपने सभी सुख एक हैं, अपने सभी ग़म एक हैं आवाज़ दो हम एक हैं … ये वक़्त खोने का नहीं, ये वक़्त सोने

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प्रेमचंद के फटे जूते

प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियां

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पंचरत्न

1) मेज़ की दराज में एक तिल का बोसा, तुम्हारे लिए संभाल रखा था, बीती सर्दी में दराज फूलों से भर गई थी, और मेरा चेहरा मुंहासों से! ### 2) हम दोनों के

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अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है इक नज़र मेरी तरफ़ भी तिरा जाता क्या है मेरी रुस्वाई में वो भी हैं बराबर के शरीक मेरे क़िस्से मिरे यारों को सुनाता

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रेख़्ते में कविता

जैसे कोई हुनरमंद आज भी घोड़े की नाल बनाता दिख जाता है ऊँट की खाल की मशक में जैसे कोई भिश्‍ती आज भी पिलाता है जामा मस्जिद और चांदनी चौक में प्‍यासों

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ख़ून फिर ख़ून है

ज़ुल्म फिर ज़ुल्म है बढ़ता है तो मिट जाता है ख़ून फिर ख़ून है टपकेगा तो जम जाएगा ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे तेग़-ए-बे-दाद

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जम्हूरियत

दस करोड़ इंसानो! ज़िंदगी से बेगानो! सिर्फ़ चंद लोगों ने हक़ तुम्हारा छीना है ख़ाक ऐसे जीने पर ये भी कोई जीना है बे-शुऊर भी तुम को बे-शुऊर कहते हैं सोचता हूँ

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