नदी बोली समंदर से

1 min read

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ
मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ

मुझे ऊँचाइयों का वह अकेलापन नहीं भाया
लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया
मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया
बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर
छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ

मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका
कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका
मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका
मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई
मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ

पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल
नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल
नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल
पहन आई मैं हर गहना कि तेरे साथ ही रहना
लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ

कुँवर बेचैन

कुँवर बेचैन ( जन्म - ११९४२) हिन्दी के महनीय कवियों में से हैं. आपने गाज़ियाबाद के एम. एम. एच महाविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में अध्यापन किया व् रीडर भी रहे. आप हिंदी ग़ज़ल व् गीत के हस्ताक्षर हैं.

कुँवर बेचैन ( जन्म - ११९४२) हिन्दी के महनीय कवियों में से हैं. आपने गाज़ियाबाद के एम. एम. एच महाविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में अध्यापन किया व् रीडर भी रहे. आप हिंदी ग़ज़ल व् गीत के हस्ताक्षर हैं.

नवीनतम

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो