जिंदगी का अर्थ
मरना हो गया है
और जीने के लिये हैं
दिन बहुत सारे।
इस
समय की मेज़ पर
रक्खी हुई
जिंदगी है ‘पिन-कुशन’ जैसी
दोस्ती का अर्थ
चुभना हो गया है
और चुभने के लिए हैं
पिन बहुत सारे।
निम्न-मध्यमवर्ग के
परिवार की
अल्पमासिक आय-सी
है जिंदगी
वेतनों का अर्थ
चुकना हो गया है
और चुकने के लिए हैं
ऋण बहुत सारे।

कुँवर बेचैन
कुँवर बेचैन ( जन्म - ११९४२) हिन्दी के महनीय कवियों में से हैं. आपने गाज़ियाबाद के एम. एम. एच महाविद्यालय हिंदी विभागाध्यक्ष के रूप में अध्यापन किया व् रीडर भी रहे. आप हिंदी ग़ज़ल व् गीत के हस्ताक्षर हैं.