साथ रहने का वादा
मर्तबान में पड़ा अचार था
सड़ गया
फेंक दिया
और सुनो
तुम्हारी सब्जी में
नमक हमेशा ज्यादा होता था
और मैं नहीं भूला
मेरी व्हाईट शर्ट पर
तुम्हारे हल्दी वाले हाथों के निशान…
नईईईइ शर्ट थी मेरी वहह्ह्ह्ह !!!!!!!!
बासी ‘प्रौन मंचूरियन‘ सा
प्यार तुम्हारा
छी :
ठंडा -जमा हुआ
लो
कोने में उठा कर फेंक दिया है
तुम्हारा पिंक कलर वाला टेडी
तुम्हारी सेक्सी नायलोन नायटी पर खाना खाता हूँ अब
कमबख्त
ख़त्म ही नहीं होता….
इस छोटे से घर में तुम्हें भुलाने के अब भी सौ बहाने हैं !

शायक आलोक
शायक आलोक हिंदी के अग्रणी कवियों में चर्चित नाम हैं. आपकी कविताएँ, लेख व् अनुवाद देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं. आपसे shayak.alok.journo@gmail.com पर बात की जा सकती है.