हीर सुफ़ियां

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कविता : हीर सुफ़ियाँ

हीर सुफ़ियां है एक सुन्दर लड़की
हीर सुफ़ियां के हैं उनतीस दांत
हीर सुफ़ियां मुस्काती है तो लाल किले की लाल दीवार
और सुर्ख़ हो जाती है

चांदनी चौक में रहती है हीर सुफ़ियां
वज़ीराबाद के गुम्बद तक आती है
उसके बिरयानी की ख़ुशबू
एक दिन मैं चढ़ गया वज़ीर के गुम्बद पर
और जोर से पुकारा उसका नाम
कश्मीरी गेट घंटों जाम रहा

बिटेन कॉफ़ी बनाती है हीर सूफ़ियां
छोटी कटोरी को घंटे भर घुमाती है
और गुनगुनाती है
व्हाटएवर आई डू, आई डू इट फॉर यू
उसके होंठ कॉफ़ी जैसे कत्थई हो जाते हैं

उसी एक रोज
उसके दुपट्टे के कोर में बंधा था बिरयानी का मसाला
उसके सलवार पर गिर आया
बदनाम दाग से डर गयी हीर सुफ़ियां
फिर बिस्तर पर पड़े बुरके को देखा और हँस पड़ी

उर्दू बोलती है
और उर्दू में ही खूब हंसती है हीर सुफ़ियां

बुरके के अन्दर और बुरके के बाहर है दो अलग दुनिया
जानती है हीर सुफ़ियां
कपड़े संभालती आईना देखती है
बासी बिंदी माथे पर लगाती है
हरी चूड़ियाँ वहीं बाथरूम में छोड़ देती है

लव बाइट्स पर मोशचराईज़र लगाकर चली गयी हीर सुफ़ियां
फिर कभी नहीं लौटी
लाल किले की एक ईंट पर
अब भी उसका नाम लिखा है.

शायक आलोक

शायक आलोक हिंदी के अग्रणी कवियों में चर्चित नाम हैं. आपकी कविताएँ, लेख व् अनुवाद देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं. आपसे shayak.alok.journo@gmail.com पर बात की जा सकती है.

शायक आलोक हिंदी के अग्रणी कवियों में चर्चित नाम हैं. आपकी कविताएँ, लेख व् अनुवाद देश के विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं. आपसे shayak.alok.journo@gmail.com पर बात की जा सकती है.

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