देखो हत्यारों को मिलता राजपाट सम्मान
जिनके मुँह में कौर मांस का उनको मगही पान
प्राइवेट बंदूक़ों में अब है सरकारी गोली
गली-गली फगुआ गाती है हत्यारों की टोली
देखो घेरा बाँध खड़े हैं ज़मींदार के गुंडे
उनके कंधे हाथ धरे नेता बनिया मुँछमुंडे
गाँव-गाँव दौड़ाते घोड़े उड़ा रहे हैं धूर
नक्सल कह-कह काटे जाते संग्रामी मज़दूर
दिन दोपहर चलती है गोली रात कहीं पर धावा
धधक रहा है प्रांत समूचा ज्यों कुम्हार का आवा
हत्या-हत्या केवल हत्या-हत्या का ही राज
अघा गए जो मांस चबाते फेंके रहे हैं गाज
प्रजातंत्र का महामहोत्सव छप्पन विध पकवान
जिनके मुँह में कौर मांस का उनको मगही पान।

अरुण कमल
अरुण कमल (जन्म-15 फरवरी, 1954) आधुनिक हिन्दी साहित्य में समकालीन दौर के प्रगतिशील विचारधारा संपन्न, अकाव्यात्मक शैली के ख्यात कवि हैं। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त कवि ने कविता के अतिरिक्त आलोचना भी लिखी है, अनुवाद कार्य भी किये हैं तथा लंबे समय तक वाम विचारधारा को फ़ैलाने वाली साहित्यिक पत्रिका आलोचना का संपादन भी किया है।