1.
प्रेम में डूबी हुई औरतें
कई बार लांघती हैं
घर की चौखट को
अपनी चिट्ठियों से
अपने अधूरे प्रेम से
अनसुने संवाद से
अनकहे वायदों से
उन गाए हुए गीतों में
बीते हुए स्वप्न में
ढली हुई साँझ में
समय के देहरी पर खड़ी हो
रचती हैं
प्रतीक्षा को, इंतजार को
प्रतीक्षारत हैं इनकी आत्मा
मेड़ पर उपजे फूलों की तरह
सेमल के पत्ते
और गुलाब की पंखुड़ियाँ
अवश्य अवगत होंगे
सारी भाषाओं से, भावनाओं से।
2.
कल दुनिया भर की
सारी भाषाएँ
कंप्युटर के अलगोरिदम में
अपने भाव,
अपने शब्द,
अपने अर्थ के
बुनियादी ढांचे को
मशीन के पिंडलियों की तरह
ढाल देंगी
ये पहली दुनिया होगी
जब प्रेम प्रकृति के
तात्विक तत्वों, स्वच्छंद विचारों से
मुक्त होगी
किन्हीं दो निष्क्रिय परजीवियों में
तब हम आखिरी बार देखेंगे
पृथ्वी के सूर्य को, क्षितिज को
उनकी परछाईयों को
अनछुए शब्द से
जो शायद उस समय तक
बची रहेंगी
इंसानों के मुक्तिबोध में
कल्पना की तरह, इच्छा की तरह।
3.
दुनिया की
सबसे सुन्दर कविताएँ
नाज़ी के बंकरों में
गिरते आँसुओं से
लिखी गईं
अपने आप का
हर पहला शब्द
जिसे स्याही ने नहीं
बल्कि हीनता ने
भेदभाव ने गढ़ा
अभी कई और
सुन्दर कविताओं
और श्वेत-पत्रों
का लिखा जाना बाकी है
मुझे ऐसी केवल
तीन कविताएँ चाहिए
जो श्मशान या कब्रगाह तक
मेरे साथ चल सके
अपनी परछाईं की तरह।

रंजन बरन
रंजन बरन वर्तमान में इंजीनियरिंग कर रहे हैं और पिछले 2 सालों से हिंदी साहित्य से जुड़े हैं। आपकी कविताएँ समय-समय पे अलग-अलग पोर्टल पर प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे r805103@gmail.com पे बात की जा सकती है।