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धुंधली शिकायतें

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धुंधली शिकायतें उमा भगत

ट्यूशन में बैठे -बैठे आशिमा की कमर में दर्द होने लगता है, वो जब अपने कमर को सीधा करती है और एक सांस भरती है तो उसका वक्ष थोड़ा फूल जाता है। उसे हंसने की आवाज सुनाई देती है, उसके आस पास बैठे लड़कों की आवाज थी ।

विज्ञान विभाग, कक्षा ११वीं की अकेली लड़की थी आशिमा, बाकी सब लड़के थे ।

आशिमा का ध्यान फिर से उसकी कमर दर्द की ओर जाता है, फिर उसे याद आता है कि ये तो महीने के वो दिन है और जब वो पीछे मुड़कर अपने सफेद कमीज को देखती है तो उसे खून के निशान दिखते हैं, थोड़े से।

स्कूल की क्लासेज शाम ३:२४ के आसपास खत्म हो जाती थी ‌और ट्यूशन ४:१५ से शुरू होती थी, आशिमा का घर स्कूल ‌से दूर था, सो वो कुछ देर रेल स्टेशन पर खड़ी थी और समय से थोड़ा पहले ट्यूशन पहुंच गयी थी। ये फिजिक्स ट्यूशन थी।

आशिमा ने उठ कर घर जाने को सोचा, पर उतने में सर आ गए और आकर ही कहा, “आज हम vectors पढ़ेंगे।” आशिमा को फिजिक्स पसंद नहीं था,‌ उसे डर था, अगर वो इसे मिस् कर दे, तो कहीं वो पीछे छूट गयी तो?

वो अपनी सारी स्थिति भूल जाती है और किताब निकाल कर vectors ढूंढने लगती है, ये सब उससे उसका डर करवा रहा था “फिजिक्स का डर”।

हम चाहे कितना ही बड़ा काम करें या छोटा काम करें प्रकृति हमें कोई छूट नहीं देती। आखिर ये हमारी विशेषताएं हैं, एक महिला होने की विशेषता ।

आशिमा बैठी रही, पूरे २ घंटे। सर चले गए। वो अपने आसपास सबको ताकती है, यकीन मानिए उसे एक भी चेहरा ऐसा नहीं दिख जिससे वो ममद मांग ले। उसके घर जाने की ट्रेन ६:४५ की थी, उसने अपना सायकिल उठाया और स्टेशन की ओर चल पड़ी। सायकिल स्टेंड में उसने सायकिल रखी, कंधे पे लटके बैग को थोड़ा और लटकाया, जिससे कि रक्त के निशान न दिखे। कंधे पे लटके बैग में कुल २०२७ पन्ने थे फिजिक्स की किताब थी, कहने को तो ११वीं की किताब थी वो लेकिन उसमें सारी JEE, AIIMS, AIEEE और पता नहीं कितने परिक्षाओं के प्रश्न सेंपल थे।

शरीर थक चुका था, मन कराह रहा था, कोई अपने भावनाओं को इतना कैसे नज़रंदाज़ कर सकता है, जैसे वो शरीर नहीं एक मशीन हो, हमारी भावनाएं जीवित होती हैं‌, उन्हें स्नेह चाहिए, भावनाओं को जगह दीजिए, जो इन्हें चोट पहुंची तो दर्द बहुत होगा।

इन सभी बातों से अनजान आशिमा, ट्रेन में खड़ी खड़ी सोच रही थी, ट्यूशन के इतने लोगों में उसे एक भी चेहरा ऐसा क्यों नहीं दिखा, जिससे वो मदद मांग सके? क्या वो इस समाज का हिस्सा नहीं? ये आशिमा की पहली शिकायत थी, जो धुंधली ही रह जाती है, जिसपर कोई प्रकाश नहीं पड़ता।

ट्रेन में आशिमा को एक लड़का दिखा, जिसकी पीठ उसे दिखा रही थी, उसके टी-शर्ट पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था “IIT ROPAR”, आशिमा के आंखों में एक जिज्ञासा जाग जाती है, पर उसका स्टेशन आ जाता है और उसे उतरना पड़ता है।

घर आकर वो अपने जूते उतार कर, नहाने चली जाती है। फिर वो खाने बैठ जाती है। सब्जी में चाहे जो भी हो, हमेशा सब्जी देखकर नाक धुनने वाली आशिमा, आज बिना सब्जी देखे खाने लगती है।

16 साल की आशिमा, ईश्वर की अलग ही कलाकारी थी। उसे बोलने का बहुत शौक था, शब्दों में अलग ही प्रखरता थी, उच्चारण बिल्कुल सटीक। उसके कोई भी शब्द निर्जीव नहीं लगते थे, हर शब्द भावनाओं के चासनी में डूबे हुए थे।

समाज किसी भी शुरुआती प्रतिभा को हेय दृष्टि से देखता है, उसकी निन्दा करता है।

आशिमा का मन नाजुक था, उसे हमेशा ‌कोई न कोई कहता ही रहता था,”कितना बोलती है”। गांधी जी को पूजने वाला ये देश‌, उनके हर भाषण को आदर्श बताने वाले ये लोग, कितने पाखंडी है। कैसी विडम्बना है यहां प्रतिभाओं को दबाकर इंतजार किया जाता है कि कब ये विद्रोह करेंगी। पर क्या हर किसी में इतनी शक्ति है कि वो विद्रोह कर सके? ,ऐसी स्थिति में तो बेशक ये दबी ही रह जाती होगी न? जिनका जिक्र कहीं नहीं रहता।

आशिमा को इतनी गहरी समझ नहीं थी, वो धीरे-धीरे अपनी बोलने की प्रतिभा से दूर जा चुकी थी, बिल्कुल अंजान। फिजिक्स, केमिस्ट्री, मैथ्स की कक्षा में सिर्फ सुनना काम था, वहां ज्यादा बोलने की इज़ाजत नहीं थी।

15 अगस्त, स्वतंत्रता दिवस, वैसे तो हमें उतनी स्वतंत्रता नहीं मिली, फिर भी हम इसे खुशी खुशी ही मनाते हैं। स्कूल में एक फंक्शन आयोजित हुआ था, जिसकी एंकरिंग करने के लिए आशिमा को चुना गया था।

आशिमा उस दिन काफी खुश थी, केसरिया रंग की साड़ी, छोटी छोटी तीन बिंदी – केसरिया,सफेद और हरे रंग की, चेहरे पर एक‌ अजेय आत्म विश्वास,होंठों पर एकदम सच्ची मुस्कान लिए, उसके 5फूट के कद में 2इन्च के हिल्स जुड़ गए थे रंग सांवला पर बेहद आकर्षक, कुछ ऐसा जिससे आपकी नजर न हट सके‌। फंक्शन अच्छा बीता , करिब 2 बजे तक सब समाप्त हो चुका था।

3 बजे से उसकी मैथ्स की क्लास रखी गई थी उस दिन , सबके विचार – विमर्श पर, लेकिन आशिमा से किसी ने नहीं पूछा था, उसे सिर्फ बताया गया था कि आना है। उसके १०वीं तक के जितने साथी थे, उनका विषय अलग था, पर सब साथ, आशिमा के साथ वो एक ही स्कूल में थे। फंक्शन के बाद उनका घूमने का प्लान था, वो आशिमा से बहुत जिद कर रहे थे साथ चलने के लिए। वो उन्हें मना नहीं कर पाई।

उसके साथ 4लड़कियां और 3 लड़के थे। उन तीनों ने अपने किसी दोस्त से बाईक उधार मांगी थी। 2 बाईक में 2-2 लड़कियां बैठ गई। बची एक बाईक और आशिमा। आशिमा बाईक पर बैठी, उस लड़के का नाम आकाश था। आशिमा और आकाश अच्छे दोस्त थे। सब चल पड़े बहुत खुशी के साथ बिंदास। सब कुछ न कुछ बोल रहे थे , पर आशिमा चुप थी। “अरे आशिमा! तू तो भूल ही गई हमें , बोल कुछ या चुप ही रहेगी?” ये आवाज आकाश की थी। आशिमा ने खिलखिलाते हुए कहती है, “अरे ऐसी बात नहीं है।” जैसे उसे इतने ही शब्द मिले बोलने के लिए , वो‌‌ भी‌‌ बड़ी मुश्किल से।

वो सभी पार्क पहुंचे , नाम का तो वो चिल्ड्रेन पार्क था, पर वहां सभी जोड़ों ‌मे बैठे। दिन दुनिया की सारी परेशानियों से कुछ पल‌ के लिए पीछा छुड़ाकर वो‌‌ किसी ऐसे के साथ बैठे थे जो उन्हें सुनता है, प्यार से।

आशिमा और उसके सारे दोस्त वहां एक‌ सर्कल बना के , हाथों में एक एक कुल्फी लिए बैठ गए। ढेर सारी बातें हुई। फिर सब पार्क के बाहर आए और सबने मिलकर गोलगप्पे खाये। वहां से सब अपने अपने घर चले गए , आकाश आशिमा को स्टेशन तक छोड़ने आया। जब वो स्टेशन पर उतरी तो आकाश ने कहा,”ठीक से जाना हां।” उत्तर में आशिमा,”हां” कह कर चली गई।‌

एक सामान्य दिमाग अपनी एंकरिंग के बारे में ही सोचता उस वक्त, पर आशिमा का दिमाग जैसे एक भय का सागर बन चुका था, एक विशाल भय का। आशिमा मैथ्स के क्लास के बारे में सोच रही थी।

उसका मन‌ कर रहा था कि वो किसी से फोन करके पूछे कि आज क्लास में क्या पढ़ाया सर ने, लेकिन उसके पास किसी का भी नम्बर नहीं था। ऐसी बात नहीं है कि उसने कभी किसी से दोस्ती नहीं करनी चाही थी, पर परिस्थितियां बिल्कुल विपरित थी।

आशिमा घर आकर सो गयी, वो बहुत थकी हुई थी। तभी उसका की-पैड फोन बजता है। आकाश का फोन था , वो कहता है, “हैलो आशिमा! तू आज बहुत खुबसूरत लग रही थी और तेरी आवाज़ , वाह !वाह! अति सुन्दर “। ये जानते हुए भी कि वो सच बोल रहा था, आशिमा ने कहा,”झूठ!” जैसे और शब्द नहीं थे उसके पास।

“अरे पगली सच”!

आशिमा के आवाज़ में एक थकान थी। और उस थकान को आकाश महसूस कर सके इतनी गहरी समझ उसमें नहीं थी। थोड़ी देर बात करने के बाद आशिमा उसे बाय कहकर फोन रख देती है।

दूसरे दिन फिजिक्स की ट्यूशन थी। आशिमा के कुछ क्लासमेट्स फिजिक्स और मैथ्स ट्यूशन में कौमन‌ थे। सब आ चुके थे , सर का आना बाकी था।‌ कुछ लड़के बिना हेडफोन लगाए अपने एंड्रॉयड में पोर्न देख रहे थे , उसकी अश्लील आवाज आशिमा के कानो में गूंज रही थी।एकाएक आशिमा की आंखें भर आईं। वो रोना चाहती थी, उसके आंसू गिरने को तैयार थे, तभी सर का फोन आता है , किसी इंटेलिजेंट स्टुडेंट के फोन में। सर का मैसेज था कि वो आधे घंटे लेट आएंगे। आशिमा के आंखों में अटके आंसू गिर जाते हैं‌। वो बाहर आ जाती है, बाहर थोड़ा आगे, उसे एक आवाज सुनाई देती है, “आशिमा!!!” वो नजरें उठा कर सामने अचानक आकाश को देखती है। वो अचानक जोर से सायकिल का ब्रेक दबाती है। “यार ऐसे कौन सायकिल चलाता है , कहाँ गुम हो मोहतरमा??”

पहले से लाल हुई आंखों को वो और एक बार मलती है , जिससे वो और लाल हो जाती है।”कुछ नहीं” वो बिना नजरें मिलाए आकाश से ये कहती हैं।

“तू रो रही है? क्या हुआ बता मुझे” आशिमा जैसे एकदम से फूटकर रोने लगती है। जैसे उसके शब्द खो जाते है‌। सामने के एक खुले मैदान में वो बैठकर थोड़ी देर बातें करते हैं। आशिमा उसे रोने की वजह नहीं बताती। वो जितनी बार उससे वजह पूछता वो‌ और रोने लगती , सो उन्होंने बात करने की टापिक बदल दी।

फिर वो दोनो स्लो मोशन में अपनी सायकिल लेकर स्टेशन पहुंचे हैं। आशिमा अपने सायकिल को स्टैंड में रखती है, फिर वो स्टेशन के ओवर ब्रिज पर खड़े होकर आशिमा की ट्रेन आने की राह देखते हैं। ट्रेन आती है , फिर आशिमा ,”बाय” बोलकर चली जाती है।

कभी कभी हमें कोई सुनने‌ वाला नहीं होता‌,पर कभी कभी कोई दिल खोलकर हमें सुनना‌ चाहता‌ पर हम कुछ भी बोल नहीं पाते, शायद तब तक हम बोलना‌‌ भूल जाते हैं, हम उन बातों के साथ कैसे भी एडजस्ट हो जाते हैं या सर्वाइव करना सीखते हैं शायद।

आशिमा ट्रेन में खड़े खड़े सोचती है कि वो कितनी कमजोर है। उसे ऐसा लगता है कि अगर वो मजबूत होती तो ऐसे रोते हुए घर नहीं जाती। ये सोच कर वो अपने आंसू छुपाने के भरसक कोशिश में फिर नाकाम हो जाती है।

जीवन में कभी कभी हम कुछ ग़लत परिभाषाएं रट लेते हैं असल में वो हमें रटाए जाते हैं।”सिर्फ कमजोर लोग ही रोते हैं।” कमजोरी की यही परिभाषा आशिमा ने रटी थी। जो कितना ग़लत था इस बात से आशिमा बिल्कुल अनजान थी।

वो घर पहुंच कर पूरी रात इस विषय पर सोचती है। वो खुद को बदलने का‌ निश्चय करती है। उसे सर्वाइव करना था किसी भी तरह।
पर वो नहीं जानती थी कि उसकी एक अलग दुनिया है, उसे कहीं भी एडजस्ट करने की जरुरत नहीं। वो अपनी ही दुनिया से दूर जा रही थी। कहीं वो राह भटक गयी तो?

सुबह के उजाले में एक अलग ही रौनक थी। आशिमा स्कूल जाने के लिए तैयार हो रही थी।एक नकली आत्मविश्वास लिए। खुद को बदलने की चाह में हम खुद को कैसे खो देते हैं, ये रास्ता कितना लम्बा होता है, फिर भी हमें अहसास नहीं होता है जबतक की एक जोर की ठोकर न लगे।
आशिमा सबसे पहले यह निश्चित कर लेती है कि वो बुरा लगने पर, अपमानित होने पर रोएगी नहीं। फिर वो इसके विकल्प में क्या करेगी ?..वही जो सब करते हैं। गाली देगी, और एक सिगरेट फूकेगी। और जब लोग बहुत टेंस होते हैं तो क्या करते हैं ?..उसका दिमाग इस उत्तर को ढूंढने लगता है। फिर वो उस प्रश्न को वेटिंग पर रख देती है।

शाम को स्कूल के बाद वो केमिस्ट्री ट्यूशन जाती है। शाम ५ बजे। वो झुक के बोर्ड से न नोमेनक्लेचर के कुछ बेसिक रूल्स अपने खाते में उतार रही थी। तभी कुछ लड़के उसके झुकने पर कुछ टिप्पणी करते हैं। उसके कान गर्म हो जाते हैं , वो अपने क्रोधित आंखें ऊपर उठाती है और कहती है,”अबे ! अपनी मां को भी ऐसे ही ताड़ना ! “सर की उपस्थिति भी उसे भयभीत नहीं कर पाती है। सर उन लड़कों को थोड़ा डांटते हैं। फिर स्थिति को बिना गंभीरता से लिए आगे वो लाईन स्ट्रक्चर्स को समझाने लगते हैं।

7 बजे क्लास खत्म होती है, आशिमा की ट्रेन 7:20 की थी। उसके सायकिल के उपर 5 ओर सायकिलें थी। वो कितनी बार कह चुकी थी ऐसा होने पर सिर्फ 5 मीनट के वजह‌ से उसकी ट्रेन छूट जाती है , पर उसकी बात कोई माने तब न। पर आज वो एडजस्टमेंट के मूड में नहीं थी।उसने तीन सायकिल उठा कर जोर से फेंक दी। और अपनी सायकिल निकाली‌। “कौन है बे! “कुछ लड़के चिल्लाते हैं। आज नज़रंदाज़ करने की बारी आशिमा की थी। वो सायकिल ले कर चल पड़ती है।

स्टेशन पर उसे आकाश मिलता है, आशिमा उससे पूछती है ,”यहां कैसे?”

“बस तुमको देखने”

“अरे ये “तुम” किसके लिए ?”

“तुम और तू में क्या रखा है आशिमा?”

वो दोनों चलते चलते बातें कर रहे थे, ट्रेन का समय हो चुका था। “मैं तुमसे प्यार करता हूं आशिमा।” आशिमा ट्रेन के गेट पर खड़ी थी और‌ आकाश प्लेटफार्म पर। ट्रेन की होर्न बजती है। आशिमा बिन कुछ कहे ट्रेन की गेट पर खड़े हुए चली जाती है। प्रेम से पूरी अपरिचित आशिमा कुछ सोच नहीं पाती है, कुछ भी नहीं।

केमिस्ट्री ट्यूशन में दुसरे दिन एक टेस्ट था,घर जाकर वो अपने कंधे से भारी बैग उतारती है और फिर खाना खाने बैठती है, ५ मीनट में पूरा खाना खा लेती है और फिर वो केमिस्ट्री टेस्ट की थोड़ी प्रिपरेशन करने में व्यस्त हो जाती है।

इस जीवन का क्या अर्थ जहां हम प्यार को महसूस न कर सके, आशिमा के आसपास प्रेम गूंज रहा‌ था, पर उसके कानो में तो जैसे भय की उंगलियां पहले ही पहरा दे रही थी।

रात के १२ बजे वो पूरी तरह थक कर सो जाती है। सुबह ६ बजे उसकी मैथ्स की क्लास थी, १० बजे से स्कूल फिर शाम को केमिस्ट्री टेस्ट।

उनींदि आंखें करूआ रही थी। सुबह के ५बजे वो जबरन उठती है , नहा धोकर जल्दी जल्दी में वो हाथ में एक केक का पैकेट लिए सू-लेस बिना बांधे, ५:३५ की ट्रेन पकड़ने चली जाती है। आशिमा की ट्रेन एकदम राईट टाईम थी, वो ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ती है, ट्रेन की होर्न उसे ओर तेज सुनाई देने लगती है , वो और तेज दौड़ती है और धड़ाम से प्लेटफार्म पर गिर जाती है, उसे उठाने के लिए दो लोग आगे बढ़ते हैं ,पर वो उनके आने से पहले ही उठ जाती है। और फिर से दौड़ने लगती है और अंत में ट्रेन के सबसे अंतिम डिब्बे को पकड़ ही लेती है।

सीट पे बैठ कर पहले वो अपने सांस को संभालतीं है, फिर जब पानी पीने के लिए बोतल निकालती है तब उसे याद आता है कि वो तो ब्रश करना ही भूल गयी है। पानी से फिर वो कुल्ला करती है और दो घूंट पानी पीती है। उसकी आंखें सोना चाहती थी , उसने जबरन आंखें खोल रखी थी।

हम अपने ही लिए इतने क्रूर कैसे हो जाते हैं। ये हमसे परिस्थितियां करवाती है, पर इन परिस्थितियों को हम जन्म नहीं देते‌ फिर हम इनको क्यों झेलते हैं? क्योंकि हमे सिखाया जाता है कि इनको झेलने वाले हीरा होते हैं। परिस्थिती इन्हें तराश कर हीरा बनाती है, पर जो प्लेटिनम की चमक रखता हो वो अपनी इच्छा से क्यों नहीं जी सकता? उसकी एक हीरे से तुलना करना क्या मूर्खता नहीं?

आशिमा मैथ्स ट्यूशन पहुंचती है। वहां वो १० मिनट लेट पहुंचती है। वहां पढ़ाई शुरू हो चुकी थी। इंटीग्रेशन की पहली क्लास थी। क्लास ८:३० में खत्म हो जाती है। उसका घर इतना नजदीक नहीं था कि वो घर जाकर फिर स्कूल आए, सो वो स्टेशन पर खड़ी थी, हाथ में एक बिस्किट का पैकेट लिए। तभी उसका फोन बजता है। आकाश का फोन था। “हैलो आशिमा! कहां हो? मैं स्टेशन पर ही हूँ। “आशिमा अंतिम प्लेटफार्म पर थी। आकाश वहां आता और कहता है, “गुड मॉर्निंग”। आशिमा जवाब में सिर्फ मुस्कुराती है। फिर वो बिस्किट का पैकेट फाड़ कर उसे देती है और एक अपने मुंह में लेती है। आकाश कुछ देर उससे बातें करता है, फिर रहा वो पूछता है, “क्या सोचा तुमने आशिमा?”

आशिमा – “ये क्या तुम तुम लगा रखा है ,”तू “ही ठीक है ये *तुम”बड़ा अजीब लगता है।

“बोलो ना आशिमा?”

“हम दोस्त ही ठीक हैं इससे आगे का मैंने कभी नहीं सोचा आकाश ,सच। “जाओ तुम वरना स्कूल के लिए फिर लेट हो जाओगे।”

“अच्छा ठीक है ,पर तुम सोचना , मैं सच में तुमसे प्यार करता हूँ।”

आशिमा स्कूल पहुंचती है, पहली क्लास हिन्दी की थी मैम आकर एटेंडेंस लेती है, आशिमा पूरी तरह नींद में थी और वो कब सो गई उसे खुद पता नहीं चला। क्लास खत्म होती है , तो उसके कुछ दोस्त चिल्लाते हैं , “अबे आशिमा उठ रे! और सब हंसने लगते हैं। आशिमा उठती है और फिर वो भी जोर जोर से हंसने लगती है। आकाश उसे बड़े प्यार से देख रहा था , बहुत देर से। फिर वो नजदीक आकर पूछता है ,”तेरी तबियत ठीक तो है न?,”

“हां मैं ठीक हूँ ”

“शाम को क्या कर रही हो?”

“मेरी केमिस्ट्री क्लासेज है।”

“अच्छा ठीक है , तुम , अच्छा बाबा तू ! स्कूल के बाद खा लेना‌ कुछ , फिर जाना‌ कहीं “।

“हां ये “तू” ठीक है”।

फिर दोनों हंसने लगते हैं।

शाम को ट्यूशन पहुंची आशिमा। सब‌ उपस्थित हुए, टेस्ट शुरू हुआ‌, आशिमा ने बहुत कुछ सोल्भ किया बहुत कुछ छूट भी गया। ७ बजे छूट्टी हुई , जब वो बाहर निकली‌ तो‌ उसकी सायकिल अंदर की ओर थी और सामने जान बूझकर एक KTM रखी हुई थी, किसी लड़के की ही थी , आशिमा बहुत देर तक खड़ी थी, ठीक ७ :१५ में उसने उस लड़के ने KTM को हटाता, आशिमा ने फिर अपनी सायकिल निकाली।

उसकी ट्रेन छूट चुकी थी, इसके बाद पूरे 8 बजे की ट्रेन थी। उसने सायकिल को अपने साथ लेकर , सामने की टपरी से एक सिगरेट मांगा।

“हां मैडम स्पेशल दूं या टोटल?”

आशिमा कुछ देर चुप रही और कन्फ्यूज होकर कहा,”कोई भी दे दीजिए। “वो सिगरेट और एक माचिस लिए , सामने की एक अंधेरी गली में चली गई। उसने सिगरेट जलाई और आंख बंद करके धूएं को अंदर लिया और जब उसनेे धूएं को छोड़ा और आंखें खोली तो उसके सामने आकाश खड़ा था। वो सकपका गई।

“ये सब क्या है आशिमा?”

“नहीं मैं , मतलब हां , वो ….! “शब्द पूरी तरह लड़खड़ा रहे थे। आशिमा की आंखें भीग गई।

आकाश ने उसके हाथ से सिगरेट लेके उसे नीचे फेंका और अपने पैरों से कुचल दिया, जैसे‌ वो बहुत दिनों से सिगरेट ऐसे ही बुझाता होगा।

“बोलो आशिमा क्या हुआ? क्या बात है?”

फिर वो आकाश के करीब आई। उसके गाल भीग चुके थे। आकाश ने उसके आंसूओ को पोंछा और फिर अपनी उंगलियों से उसके रुखे बालों को उसके कान के पीछे खोसा।

और उससे कहा, “इन बालों को सुलझाती नहीं हो क्या?”

आशिमा की नजरें नीचे थी। फिर आकाश ने अपने तर्जनी से उसके ठुडडी को उपर उठाया और कहा ,”मैं हूं सोना, आई लव यू”।
फिर उसके अधर आशिमा की अधरों से मिल गए।

आशिमा की लाइफ की पहली किस थी ये, महज 16 वर्ष की उम्र में।

अगर समाज को बतायेगी तो वो कहेंगे, “उम्र देखिए इनकी और कारनामे देखिए।” और उस उम्र में जिन हालात से वो लड रही थी उसका क्या?

उसने तो कभी शिकायतों के पूल नहीं बांधे ,”समाज” से। खैर, उसे इन सब से कोई मतलब नहीं था वो तो आज अपने सूखे होंठों को भींगा रही थी और इसमें गलत ही क्या है? “वो किसी के हिस्से का हक नहीं मार रही थी , वो तो अपने में मग्न थी। वो दो प्राणी अपनी सायकिल लिए स्टेशन की ओर चल दिए‌।

“तुम ठीक हो न?”

“हां”

“सुनो आकाश , शुक्रिया।”

“अरे ! कभी भी।”

उसने सायकिल खड़ी की और फिर बाय बोलकर चली गई।

घर जाकर एक कपड़े बदल कर वो एक बड़ा टी-शर्ट पहनकर, पेट के बल सो जाती है और फिर सोचने लगती है और उसे फिर याद आता है,”छी: मैं तो आज ब्रश करना भी भूल गयी थी, बेचारा आकाश!”

आशिमा बेड पर पड़े पड़े सो जाती है।

सुबह उठ कर वो फोन देखती है, जिसमे आकाश का मैसेज था, “आज मेरे साथ घूमने चलोगी?”

आशिमा सोच में पड़ जाती है। घर से दूर स्कूल 3 ट्यूशन और स्कूल के लिए नेशेसरी 75% एटेंडेंस, इस बीच वो उसे कहां एडजस्ट करती बताईए। उसके फोन मे‌ सिर्फ काल न बैलैन्स था, मैसेज बैलेंस की कभी उसे जरूरत ही नहीं पड़ी थी शायद। उसने उसे काल लगाया और बोली,”वो … आज तो नहीं हो पाएगा।” आकाश ने सिर्फ “ठीक है” कहकर फोन रख दिया‌। आशिमा को बुरा लगा, उसने फिर फोन‌ लगाया।

“हां बोलो क्या बात है”

“शाम को चले आकाश?”

“हममममम .. ठीक”, सुनो आज बस से चली आना, सायकिल मत लाना”

“ठीक है”

“हां स्कूल में मिलते हैं फिर”

“हां ठीक है”

स्कूल, स्कूल के बाद ट्यूशन ये वही फिजिक्स क्लास थी, लड़कों की वही‌‌ बत्मीजिया और सब्जेक्ट का वही डर। आज वो मैटर के स्ट्रेस ओर स्टरेन के बारे में पढ़ रहे थे।

नोनसेन्स दुनिया, मैटर का स्ट्रैस पता लगा रही है और जो यहां जीवित लोगों पर स्ट्रैस है उसका क्या ? उसको मापने की भी कोई ईकाई तो होनी चाहिए।

क्लास आज थोड़े देर से खत्म हुई। फिर वो बाहर आकर थोड़े दूर चलती है। वहां आकाश खड़ा रहता है ,एक बाईक लिए, फिर वो दोनों चल पड़ते हैं।

“हम कहां जा रहे हैं?”

“तुम जहां कहो।”

“बताओ न!”

फिर बाईक एक खुले माठ के पास रुकती है।

अंधेरा हो चुका था, 6 बज रहे थे। उनके पास 1 घंटा था। फिर आकाश एक गुलाब निकाल कर कहता है ,”हैपी रोस डे।” आशिमा चौंक जाती है।”आज रोस डे है?”

“तुम्हें नहीं पता था ?”

“नहीं तो ”

“अजीब हो तुम भी, किस दुनिया में रहती हो?”

फिर वो कुछ देर बैठते हैं।

“तुम मुझे नजरांदाज करती हो या सच में बिज़ी रहती हो?”

“ऐसी बात नहीं है आकाश। मुझे कुछ समझ नहीं आता, मुझे थोड़ा टाइम चाहिए।”

“ठीक है लगी रहो,”

“अब चले मेरी ट्रेन,”…

“हममममम चलो…”

इस मुलाकात के बाद वो‌ बहुत दिनों तक बाहर कहीं नहीं मिले थे। आशिमा के मैथ्स सर ने २ क्लास ओर बढ़ा दिए थे , आए दिन कहीं कहीं टेस्ट रहता था।

आशिमा इनमें ढलना सिख रही थी , वो बहुत बिज़ी थी, वो बहुत परेशान भी थी। आशिमा का फोन बजता है।

“ये सब क्या है ?”तुम क्या चाहती हो?”

“आई एम सो सारी मैं थोड़ी बिज़ी थी,”

“सच में ? हम एक महीने से नहीं मिले हैं,”

“मैं क्या करूं फिर?”

“तुम अपने प्राब्लम्स बताती क्यों नहीं ,मैं सच में जानना चाहता हूं ,” १५ मिनट तक वो पूरी मौन रहती है

“अब बोलो भी आशिमा,”

“तुम कहां हो ? मै अभी मिलने आउंगी तुमसे,”

आशिमा की सहन सीमा टूट चुकी थी, वो बोलना चाहती थी।

“मैं स्टेशन के इस पार एक माठ में बैठा हूं , तुम्हारे फिजिक्स ट्यूशन के पास।”

आशिमा अपने केमिस्ट्री ट्यूशन से निकल कर उससे मिलने निकल जाती है , पूरी स्पीड में , सायकिल को उडाते हुए।

आज वो सब कह देगी , कितनी शिकायतें उसके दिल में दबी है , कितनी बातें वो कहना चाहती है , पर नहीं कह पाती, कुछ चीजें वो नहीं करना चाहती , फिर भी वो कर रही है , वो कैसे अपने बोलने की प्रतिभा से दूर जा रही है और हां वो आकाश को नजरांदाज नहीं करती , ये सब वो कह देगी और वो उससे वो बातें भी कह देगी जिसपर उसे रोना आता है।”आज वो सारी शिकायतों पर से धूंध हटा देगी। सायकिल पूरे तेज रफ्तार में थी।

२ घंटे बाद उसकी आंखें अस्पताल में खुलती हैं। ए डीप एक्सिडेंट।

उसके कुछ दोस्त आसपास थे ,और उसके परिवार के लोग डाक्टर से बात कर रहे थे।

“आकाश कहां है,?”

“यही हूं , पगली,”

“उसके आंखों से आंसू बहने लगते हैं ,”

उसके हाथ को थामे वो कुछ देर बैठे रहता है।

“मैं ठीक हो जाउगी तो, फिर तुमको एक भी शिकायत का मौका नहीं दूंगी,देख लेना ,24/7 तुम्हारी ,मैंने डिसाइड कर लिया है। ”

“हां,…”ये हां काफी भारी था।
आशिमा को diffuse axonal injury हुई थी,ड्यू टू high speed motor vehicle accident।बचने की कोई उम्मीद नहीं थी।
आकाश उसका हाथ थामे कहता है,”कहो न क्या कहने के लिए ऐसे भागी आ रही थी,”

“मुझे दर्द हो रहा है , यहां सर पर ,” वो आगे कुछ कहने जा रही थी ,उसकी सांसें वही थम जाती है।

ऐसी कितनी आत्माएं अपनी शिकायतों को दबाए उपर चली जाती होगी,हम क्यों आसपास के लोगों को इतना नजरांदाज करते हैं, उन्हें क्यों नहीं सुनते।

इतना बोझ लिए , किसी को क्यों जीने देते हैं,

कुछ भी तो निश्चित नहीं , फिर हम इतना रुक रुक कर क्यों जीते हैं ?

फुल स्टॉप तो कहीं भी लग सकता है , फिर उसके पहले हम खुल कर क्यों नहीं सुनते ,किसी को भी ?…

धुंधली शिकायतें उमा भगत
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उमा भगत पश्चिम बंगाल से हैं और आपने अभी हाल ही में बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की है। आपसे umabhagat143@gmail.com पे  बात की जा सकती है।

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