टिंडे

“कभी कभी सोचता हूँ, एक डायरी खरीदकर उसका नाम तुम्हारे नाम पर रख दूँ।” “अच्छा, क्यों?” “क्योंकि मैं जैसे तुमसे अपने मन की सारी बातें करता हूँ, वैसे उसमें लिख दिया करूँगा।”

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कविताएँ : फ़हीम अहमद

(1) मेरी हथेलियों में सारे रस्ते वो मुस्कान लाने वाली एक पंक्ति कसमसाती रही। (एक) बाप के झुके हुए काँधे अंदर धंसते जा रहे गाल माथे की फड़फड़ाती हुई नसों को देखकर

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कविताएँ : रुपेश चौरसिया

1. स्मृतियों के अवशेष अवचेतन में सोए रहते हैं पुरानी डायरी की सोंधी सुगंध से एकाएक उठ बैठती हैं अल्हड़ जवान स्मृतियां और ठहाके मारकर हंसती हैं जैसे एक बच्चा खिलखिला रहा

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कविताएँ : आलम आज़ाद

1. प्रेमिकाएं मैं किसी से कैसे प्रेम करूँ? लगभग मेरी सभी प्रेमिकाओं ने मुझे निराश किया है अब तक सूखे मौसम की तरह! आकाश भर प्रेम के बदले दुनिया भर की टूटी

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कविताएँ : आसित आदित्य

1. तुम्हें सौगंध है, मेरे क़ातिल प्रेम करने के लिए नादान होना उतना ही है आवश्यक जितना कि जीवित रहने के लिए उम्मीद का होना। तुम्हारे खंजर से टपकते मेरे लहू की

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