1. स्मृतियों के अवशेष अवचेतन में सोए रहते हैं पुरानी डायरी की सोंधी सुगंध से एकाएक उठ बैठती हैं अल्हड़ जवान स्मृतियां और ठहाके मारकर हंसती हैं जैसे एक बच्चा खिलखिला रहा हो आईने में अपनी सूरत देखकर। *** 2. औरत देकची में सिर्फ भात नहीं पकाती है वो उसनती है उसमें गुंइयां के साथ की कित-कित भाई के हाथ की एक कौर रोटी पीठ पर के काले दाग बड़का बेटा जो उसे देता है वो गालियां आठवीं की छमाही की फटी चिटी मार्कशीट। *** 3. प्रेम नैसर्गिक है कहीं भी, कभी भी बे मौसम उग आता है जैसे पुरानी ढहती दीवार पर पीपल उग आता है, सूने आंगन में दूब उग आती है। *** 4. कुछ भी अचानक से नहीं घटता है एक बिजली को गिरने में लगता हैं एक दशक दो हाथियों की लड़ाई से घास को कुचलने में लगती है एक सदी दो पतंगों को गले लगकर कटने में लगती है एक सह्राब्दी हम इसे होने देते हैं क्योंकि हम जागते हुए भी सोए रहते हैं। *** 5. मैं अपनी प्रेमिका से अदृश्य हो जाना चाहता हूँ इज़हार प्रेम का अंग नहीं है प्रेम का मापदंड है, 'खुद में सिमट जाना' प्रेम स्वतंत्र हैं और इसका कलंक नैसर्गिक *** 6. सिद्धार्थ से बुद्ध होना सबसे आसान काम है, यशोधरा बने रहना उतना ही मुश्किल। विडंबना है कि कई यशोधराएं आज भी गुमसुम हैं हमारे घर में और एक सरल बुद्ध पूजनीय है।
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रुपेश चौरसिया
रुपेश खगड़िया, बिहार से हैं। आप साहित्य की नयी और मुखर आवाज़ों में से एक हैं। आपसे chaurasierupesh123@gmail.com पे बात की जा सकती है.