निरापद कोई नहीं है

1 min read
कविता : निरापद कोई नहीं है

ना निरापद कोई नहीं है
न तुम, न मैं, न वे
न वे, न मैं, न तुम
सबके पीछे बंधी है दुम आसक्ति की!

आसक्ति के आनन्द का छंद ऐसा ही है
इसकी दुम पर
पैसा है!

ना निरापद कोई नहीं है
ठीक आदमकद कोई नहीं है
न मैं, न तुम, न वे
न तुम, न मैं, न वे

कोई है कोई है कोई है
जिसकी ज़िंदगी
दूध की धोई है

ना, दूध किसी का धोबी नहीं है
हो तो भी नहीं है!

भवानी प्रसाद मिश्र
+ posts

भवानी प्रसाद मिश्र (1914 - 1985) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वह 'दूसरा सप्तक' के प्रथम कवि हैं। उनको 1972 में उनकी कृति 'बुनी हुई रस्सी' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला ; 1981 - 82 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा 1983 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।

भवानी प्रसाद मिश्र (1914 - 1985) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि तथा गांधीवादी विचारक थे। वह 'दूसरा सप्तक' के प्रथम कवि हैं। उनको 1972 में उनकी कृति 'बुनी हुई रस्सी' पर साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला ; 1981 - 82 में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्यकार सम्मान दिया गया तथा 1983 में उन्हें मध्य प्रदेश शासन के शिखर सम्मान से अलंकृत किया गया।

नवीनतम

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो

कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन

भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से