तब तुम्हारी निष्ठा क्या होती

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यदि वेदों में लिखा होता
ब्रह्म के पैर से हुए हैं पैदा।
उन्हें उपनयन का अधिकार नहीं।
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

यदि धर्मसूत्रों में लिखा होता
तुम ब्राह्मणों, ठाकुरों और वैश्यों के लिए
विद्या, वेद-पाठ और यज्ञ निषिद्ध है।
यदि तुम सुन लो वेद का एक भी शब्द,
तो कानों में डाल दिया जाए पिघला शीशा।
यदि वेद-विद्या पड़ने की करो धृष्टता,
तो काट दी जाए तुम्हारी जिह्वा
यदि यज्ञ करने का करो दुस्साहस,
तो छीन ली जाए तुम्हारी धन-संपत्ति,
या क़त्ल कर दिया जाए तुम्हें उसी स्थान पर।
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

यदि स्मृतियों का यह विधान
लागू हो जाता
तुम ब्राह्मणों, ठाकुरों और वैश्यों पर
कि तुम नीच हो,
श्मशान-भूमिवत् हो,
तुम्हारे आवास हों गाँवों के बाहर
तुम्हारे पेशे हों घृणित—
मरे जानवरों को उठाना,
मल-मूत्र साफ़ करना,
कपड़े धोना, बाल काटना,
हमारे खेतों-घरों में दास-कर्म करना।
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

यदि यह विधान लागू हो जाता (तुम द्विजों पर)
कि तुम्हें धन-संपत्ति रखने का अधिकार नहीं।
तुम ज़िंदा रहो हमारी जूठन पर;
हमारे दिए हुए पुराने वस्त्रों पर;
तुम्हें अधिकार हो पढ़ने-लिखने का;
तुम्हारे बच्चे सेवक बने हमारे
पीढ़ी-दर-पीढ़ी
हम रहें तुम्हारे शासक?
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

यदि यह विधान लागू हो जाता
कि तुम अस्पृश्य हो
तुम्हारी छाया भी अमंगल है,
हमारे शरीर, वायुमंडल और धरा के लिए;
इसलिए तुम्हें गले में लटका कर हाँडी,
और कमर में बाँधकर झाड़ू,
सड़कों पर चलने की राजाज्ञा हो,
तुम्हारा वर्जित हो मंदिरों में प्रवेश
सार्वजनिक कुँओं, तालाबों से लेना पानी।
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

यदि यह विधान लागू हो जाता
कि तुम्हारे जीवन का कोई मूल्य नहीं।
कोई भी कर सकता है तुम्हारा वध;
ले सकता है, तुमसे बेगार;
तुम्हारी स्त्री, बहिन और पुत्री के साथ,
कर सकता है बलात्कार;
जला सकता है घर-बार।
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

यदि रामायण में राम
तपस्वी-धर्मनिष्ठ ब्राह्मणों का करते क़त्ले-आम।
तुलसीदास मानस में लिखते—
पूजिए सूद्र सील गुन हीना।
विप्र गुन गुन ग्यान प्रवीना।।
तब, तुम्हारी निष्ठा क्या होती?

कँवल भारती
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कंवल भारती (जन्म 4 फरवरी 1953) एक भारतीय दलित लेखक और उनके काम को अब दिल्ली विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पुस्तकों में शामिल किया गया है। उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में दो कविताएँ, "तब तुम्हारी निष्ठा क्या होगी " और "शामबुक" है। "फिलोसॉफी ऑफ़ दलित लिट्रेचर" नामक आलोचना के अलावा भारती जी ने 15 किताबें और लिखी हैं। भारती अपने काम के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार (1996) और भीम रत्न पुरस्कार (2001) के प्राप्तकर्ता हैं।

कंवल भारती (जन्म 4 फरवरी 1953) एक भारतीय दलित लेखक और उनके काम को अब दिल्ली विश्वविद्यालय, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम पुस्तकों में शामिल किया गया है। उनकी सबसे उल्लेखनीय कृतियों में दो कविताएँ, "तब तुम्हारी निष्ठा क्या होगी " और "शामबुक" है। "फिलोसॉफी ऑफ़ दलित लिट्रेचर" नामक आलोचना के अलावा भारती जी ने 15 किताबें और लिखी हैं। भारती अपने काम के लिए डॉ अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार (1996) और भीम रत्न पुरस्कार (2001) के प्राप्तकर्ता हैं।

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