कौन दुःख के इन सदाबहार फूलों को
खाद-पानी देता है!
मेरे भीतर एक क्षीण ध्वनि कराहती है
“उसकी याद ही तो”
मेरे चित्त के अरण्य में
मेरी ही आत्मा का कोलाहल
किसका आखेट करता है!
किससे पूछूँ कि
जंगल में रह-रह कर गिरते
उदास देवदारों के पत्तों का शोक
मेरे मन में क्यों झरता है!
घाटी में लकदक फूले बुरांस का रक्त
मेरी आत्मा की कोरी चादर क्यों रँगता है!
जबकि कोई नहीं है उस तरफ,
तब धार के सबसे ऊंचे बांज की
कोटरों से
घुघूती के करुण कंठ में
कौन अभागा बाँसता है!
कौन बताए?
कि मेरी खोई हुई हँसी,
दबी हुई सिसकी,
और कांपती हुई विह्वल पुकार
जब उस तक नहीं पहुंचती
तो आख़िर कहाँ जा कर टकराती है?
( दिल धड़कने और साँस चलने से बड़ा त्रास कोई नहीं।)
संबंधित पोस्ट:

सपना भट्ट
सपना भट्ट (जन्म - 25 अक्टूबर) मूलतः कश्मीर से हैं। आप अंग्रेजी और हिंदी विषय से परास्नातक हैं और वर्तमान में उत्तराखंड में शिक्षा विभाग में शिक्षिका पद पर कार्यरत हैं। आपकी रचनाएँ देश के विभिन्न ब्लॉग्स और पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। आपसे cbhatt7@gmail.com पे बात की जा सकती है।