क्षीण ध्वनि

कौन दुःख के इन सदाबहार फूलों को खाद-पानी देता है! मेरे भीतर एक क्षीण ध्वनि कराहती है “उसकी याद ही तो” मेरे चित्त के अरण्य में मेरी ही आत्मा का कोलाहल किसका

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