मैंने उसको

मैंने उसको जब-जब देखा लोहा देखा लोहे जैसा तपते देखा गलते देखा ढलते देखा मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा!

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विदा

तुम चले जाओगे पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी-सी गंध भोर के उजास में थोड़ा-सा चंद्रमा खंडहर हो रहे

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कवि का काम

दिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम मसलन बहुत सारे कठिन कामों में एक कठिन काम है नदियों की कलकल करती

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समुद्र पर हो रही है बारिश

क्या करे समुद्र क्या करे इतने सारे नमक का कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं क्या पता कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं फिर भी

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सावन में

ऐसा क्या कुछ हुआ कि तुमने आनन फानन में इंद्रधनुष भर डाले सारे नभ के आँगन में जीवन जल की झील लबालब नभ के आँगन में झूम रहा है नंदन कानन नभ

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जाल फेंक रे मछेरे

एक बार और जाल फेंक रे मछेरे जाने किस मछली में बंधन की चाह हो! सपनों की ओस गूँथती कुश की नोक है हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है रेत के

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प्रेम में लड़की शोक करती है

प्रेम में लड़की शोक करती है शोक में लड़की प्रेम करती है प्रेम में लड़की नाम रखती है नाम जिसका रखती है माया है वह माया, जिसकी इच्छा उसकी नींद में चलती

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कोई कहे या न कहे

यह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे। सपने अपने झर जाने दे, झुलसाती लू को आने दो पर उस अक्षोभ्य तक केवल मलय समीर बहे। यह विदा का गीत कोई

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प्यार मेरे

सुधियों में गुंजारित किसी मंत्र सरीखा तुम्हारा विह्वल स्वर मेरी आत्मा की साँकलें बजाता है निरंतर सुनो! मेरी देह की एकांतिक भूमि पर चाहो तो रख सकते हो हाथ तुम आत्मा के

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