स्वप्न में तुम हो, तुम्हीं हो जागरण में

स्वप्न में तुम हो तुम्हीं हो जागरण में कब उजाले में मुझे कुछ और भाया, कब अंधेरे ने तुम्हें मुझसे छिपाया, तुम निशा में औ’ तुम्हीं प्रात: किरण में; स्वप्न में तुम

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सुगंध फूल की भाषा है

भाषा क‌ई बार बिलकुल असहाय हो जाती है कभी-कभी ग़ैरज़रूरी और हास्यास्पद भी बिना बोले भी आख्यान रचा जा सकता है मौन संवाद का सर्वोत्तम तरीका है भाषा केवल शब्दों का समुच्चय

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कोरोना काल में

समझदार हैं बच्चे जिन्हें नहीं आता पढ़ना क, ख, ग हम सब पढ़कर कितने बेवकूफ़ बन चुके? यह समय और सत्ता दोनों ने बता दिया। बच्चे बेहतर है तुम स्याही का मतलब

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भूख से आलोचना

एक मित्र ने कहा, ‘आलोचना कभी भूखे पेट मत करना। आलोचना पेट से नहीं दिमाग से होनी चाहिए।’ आजादी के बाद देश के हुक्मरानों की कितनी आलोचनाओं को दिमाग वालों ने मारा,

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एक पुराने दुःख ने पूछा

एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो? उत्तर दिया, चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है जग ने मेरे सुख-पन्छी के पाँखों में पत्थर बांधे हैं

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जो प्यार में होते हैं

जो प्यार में होते हैं चाँद उनकी शाम में बिखरे पत्तों से निकलता है और उठकर खेतों में चला जाता है जो प्यार में होते हैं पूरी-पूरी रात गेहूँ की बालियाँ बीनते

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चिड़िया का ब्याह

चिड़िया की बारात नहीं आती चिड़िया पराई नहीं हो जाती चिड़िया का दहेज नहीं सजता चिड़िया को शर्म नहीं आती तो भी चिड़िया का ब्याह हो जाता है चिड़िया के ब्याह में

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भटका हुआ अकेलापन

यह अधनंगी शाम और यह भटका हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। राजमार्ग—कोलाहल—पहिए काँटेदार रंग गहरे यंत्र-सभ्यता चूस-चूसकर फेंके गए अस्त चेहरे झाग उगलती खुली खिड़कियाँ सड़े गीत सँकरे

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क़रीब चालीस की उम्र में

लोग कहते हैं— उदास दिखना उदास होने से ज़्यादा ख़राब समझा जाता है। सो जाओ कि रात बहुत गहरी है और काली है। सो जाओ कि अब कोई उम्मीद नहीं जगाएगा तुम्हारे मन

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