जिंदगी के दौरान जो तजुर्बे हासिल होते हैं, उनसे नसीहतें लेने का सबक तो हमारे यहाँ सैकड़ों बार पढ़ाया गया है। होशियार और बेवकूफ में फर्क बताते हुए, एक बहुत बड़े विचारक
कुछ लोग दुनिया से बहस करते हैं तो कुछ सिर्फ अपने से, किन्तु कुछ थोड़े से लोग ऐसे भी होते हैं जो दुनिया से बहस करने की प्रक्रिया में अपने-आप से भी
Moreशुरू में कविता बोली जाती थी। सुनी जाती थी। मुँहा-मुँही फैलती थी। कंठस्थ होती थी। इस क्रम में कुछ हेर-फेर भी होता होगा। जितने मुँह और जितने कंठों से कोई शब्द कोई
Moreजैसा कि हम सब जानते है कि भाषा एक माध्यम है, हमारे अभिव्यक्ति का, इसके द्वारा हम अपने विचारों एवं भावनाओं को एक दूसरे के साथ साझा करते हैं। भाषा का विकास
Moreयह निबन्ध ‘अदबी दुनिया’ लाहौर के 1939 के वार्षिक अंक में प्रकाशित करते हुए इस प्रतिष्ठित पत्रिका के सम्पादक और उर्दू के बुजर्ग साहित्यकार मौलाना सलाहुद्दीन अहमद ने लिखा थाः “प्रोफेसर फैज़
Moreनेरुदा के लिए कविता कोई शौक की चीज नहीं थी कि गाहे-बगाहे, स्वांतः सुखाय, जब मन में आया लिख लिया और जब इच्छा नहीं हुई, महीनों उसकी ओर झाँका भी नहीं। कविता
Moreजिंदगी के दौरान जो तजुर्बे हासिल होते हैं, उनसे नसीहतें लेने का सबक तो हमारे यहाँ सैकड़ों बार पढ़ाया गया है। होशियार और बेवकूफ में फर्क बताते हुए, एक बहुत बड़े विचारक
Moreमैं आपसे पहले ही कह चुका हूँ कि मैं लिख नहीं सकता, क्योंकि दिमाग में ख़यालात इतने बारीक आते हैं कि जिनको जाहिर करने के लिए मुझे भाषा नहीं मिलती। आप खुद
Moreमैं क्यों लिखता हूँ? यह एक ऐसा सवाल है कि मैं क्यों खाता हूँ… मैं क्यों पीता हूँ… लेकिन इस दृष्टि से मुख़तलिफ है कि खाने और पीने पर मुझे रुपए खर्च
Moreदेह के बच्चन, मन के बच्चन, समाज के बच्चन, सभ्यता और संस्कृति के बच्चन, सरकार के बच्चन, जनता के बच्चन और काव्य के बच्चन, ये सब बच्चन मुझे एक जैसे ही लगे
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