धुआँ

बात सुलगी तो बहुत धीरे से थी, लेकिन देखते ही देखते पूरे कस्बे में ‘धुआँ’ भर गया। चौधरी की मौत सुबह चार बजे हुई थी। सात बजे तक चौधराइन ने रो-धो कर

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पाठशाला

एक पाठशाला का वार्षिकोत्सव था। मैं भी वहाँ बुलाया गया था। वहाँ के प्रधान अध्यापक का एकमात्र पुत्र, जिसकी अवस्था आठ वर्ष की थी, बड़े लाड़ से नुमाइश में मिस्टर हादी के

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सोलह आने

कमलनारायण ने आग्रहपूर्वक कहा कि आज तुम भी यहीं खाओ। वरुण है, बना लेगा। — अच्छा। मैंने स्वीकार कर लिया। दुमंज़िले की ओर देखकर कमलनारायण चिल्लाया। — वरुण, ओ वरुण! – आया।

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