एक पुराने दुःख ने पूछा

1 min read

एक पुराने दुःख ने पुछा
क्या तुम अभी वहीं रहते हो?
उत्तर दिया, चले मत आना
मैंने वो घर बदल दिया है

जग ने मेरे सुख-पन्छी के
पाँखों में पत्थर बांधे हैं
मेरी विपदाओं ने अपने
पैरों में पायल साधे हैं
एक वेदना मुझसे बोली
मैंने अपनी आँख न खोली
उत्तर दिया, चली मत आना
मैंने वो उर बदल दिया है
एक पुराने …

वैरागिन बन जाएँ वासना
बना सकेगी नहीं वियोगी
साँसों से आगे जीने की
हठ कर बैठा मन का योगी
एक पाप ने मुझे पुकारा
मैंने केवल यही उचारा
जो झुक जाए तुम्हारे आगे
मैंने वो सर बदल दिया है
एक पुराने …

मन की पावनता पर बैठी
है कमजोरी आँख लगाए
देखें दर्पण के पानी से
कैसे कोई प्यास बुझाए
खंडित प्रतिमा बोली आओ
मेरे साथ आज कुछ गाओ
उत्तर दिया, मौन हो जाओ
मैंने वो स्वर बदल दिया है
एक पुराने …

शिशुपाल सिंह ‘निर्धन’

शिशुपाल सिंह ‘निर्धन’ हिंदी साहित्य के मूर्धन्य कवियों में से एक हैं।

नवीनतम

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो