तुम चले जाओगे
पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे
जैसे रह जाती है
पहली बारिश के बाद
हवा में धरती की सोंधी-सी गंध
भोर के उजास में
थोड़ा-सा चंद्रमा
खंडहर हो रहे मंदिर में
अनसुनी प्राचीन नूपुरों की झंकार।
तुम चले जाओगे
पर थोड़ी-सी हँसी
आँखों की थोड़ी-सी चमक
हाथ की बनी थोड़ी-सी कॉफी
यहीं रह जाएँगे
प्रेम के इस सुनसान में।
तुम चले जाओगे
पर मेरे पास
रह जाएगी
प्रार्थना की तरह पवित्र
और अदम्य
तुम्हारी उपस्थिति,
छंद की तरह गूँजता
तुम्हारे पास होने का अहसास।
तुम चले जाओगे
और थोड़ा-सा यहीं रह जाओगे।
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अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी (जन्म - 1941) समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी हैं, परंतु एक कवि के रूप में आपकी प्रसिद्धि अधिक है। 'कहीं नहीं वहीं' काव्य संग्रह के लिए सन् 1994 में आपको भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति भी रह चुके हैं। वर्तमान में आप ललित कला अकादमी के अध्यक्ष हैं। भोपाल में भारत भवन की स्थापना में भी आपने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।