अगर बच सका
तो वही बचेगा
हम सबमें थोड़ा-सा आदमी–
जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता,
अपने बच्चे के नंबर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर,
जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर
सबसे पहले अस्पताल पहुंचाने का जतन करता है,
जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने से नहीं हिचकिचाता–
वही थोड़ा-सा आदमी–
जो धोखा खाता है पर प्रेम करने से नहीं चूकता,
जो अपनी बेटी के अच्छे फ्राक के लिए
दूसरे बच्चों को थिगड़े पहनने पर मजबूर नहीं करता,
जो दूध में पानी मिलाने से हिचकता है,
जो अपनी चुपड़ी खाते हुए दूसरे की सूखी के बारे में सोचता है,
वही थोड़ा-सा आदमी–
जो बूढ़ों के पास बैठने से नहीं ऊबता
जो अपने घर को चीजों का गोदाम होने से बचाता है,
जो दुख को अर्ज़ी में बदलने की मज़बूरी पर दुखी होता है
और दुनिया को नरक बना देने के लिए दूसरों को ही नहीं कोसता
वही थोड़ा-सा आदमी–
जिसे ख़बर है कि
वृक्ष अपनी पत्तियों से गाता है अहरह एक हरा गान,
आकाश लिखता है नक्षत्रों की झिलमिल में एक दीप्त वाक्य,
पक्षी आंगन में बिखेर जाते हैं एक अज्ञात व्याकरण
वही थोड़ा-सा आदमी–
अगर बच सका तो
वही बचेगा।
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अशोक वाजपेयी
अशोक वाजपेयी (जन्म - 1941) समकालीन हिंदी साहित्य के एक प्रमुख साहित्यकार हैं। वाजपेयी जी भारतीय प्रशासनिक सेवा के एक पूर्वाधिकारी हैं, परंतु एक कवि के रूप में आपकी प्रसिद्धि अधिक है। 'कहीं नहीं वहीं' काव्य संग्रह के लिए सन् 1994 में आपको भारत सरकार द्वारा साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाज़ा गया। वाजपेयी महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति भी रह चुके हैं। वर्तमान में आप ललित कला अकादमी के अध्यक्ष हैं। भोपाल में भारत भवन की स्थापना में भी आपने काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।