तुम्हारी आवाज़ की उँगली पकड़े
मैं करती हूँ यात्रा
अधैर्य से धैर्य की
आक्रोश से प्रेम की
उद्वेग से शांति की
विषम से सम की
तुम्हारी आवाज़ के आरोह-अवरोह में
समा जाते हैं
सारे मिलन और बिछोह
ताप और संताप
मैं तजती हूँ चंचलता
होती हूँ थिर
समेटती हूँ आँखों से बहता काजल
और रख देती हूँ एक बोसा धीरे से
तुम्हारी आवाज़ की पेशानी पर
कुछ आवाज़ें मलहम होती हैं।

मालिनी गौतम
मालिनी गौतम मूलतः झाबुआ, मध्यप्रदेश से हैं. इन दिनों आप संतराम, गुजरात में अंग्रेजी की प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं. अब तक आप के दो कविता संग्रह बूँद-बूँद अहसास (गुजरात हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा अनुदानित), एक नदी जामुनी-सी प्रकाशित हो चुके हैं. इसके अलावा एक ग़ज़ल संग्रह दर्द का कारवाँ, एक नवगीत संग्रह चिल्लर सरीखे दिन भी प्रकाशित हो चुके हैं. आपको दो बार गुजरात साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष 2016 एवं 2017) , परम्परा ऋतुराज सम्मान (दिल्ली, 2015) वागीश्वरी पुरस्कार (मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन भोपाल,2017) तथा जनकवि मुकुटबिहारी सरोज स्मृति सम्मान(सरोज स्मृति न्यास ग्वालियर, 2019)* से नवाजा जा चुका है. आपसे malini.gautam@yahoo.in पे बात की जा सकती है.