दुःख से कैसा छल

1 min read
ummeedein

मूरख है कालीघाट का पंडित
सोचता है
मंत्रोचार से और लाल पुष्पों से ढक लेगा पाप
नहीं फलेगा कुल गोत्र के बहाने कृशकाय देह का दुःख

मूरख है ममता बंदोपाध्याय का रसोइया
दुःख को सुंदर माछ की तरह रांधने का
प्रयास करता है

मूरख है धर्मतल्ला का व्यापारी
गरम चादर की तरह
नित ही
दुःख बेचकर ख़रीदता है दुःख

मूरख है विक्टोरिया का बूढ़ा कोचवान
हिनहिनाते हैं दूर दूर खड़े पशु तो
मात्र चारा पानी देता है उन्हें

कामदेव के बाण की तरह मूरख है संसार
द्वार पर आम-पत्र बाँधता है
नहीं जानता
उसी के सुसज्जित कुटुंब से निकला है दुःख जुलूस बन के

और सबसे मूरख हैं ये कवि
संसार के दुःख को भाषा से छलते हैं।

ज्योति शोभा

ज्योति शोभा मूलतः दुमका, झारखण्ड से हैं. आपकी रचनाएँ ही आपकी पहचान हैं. आपसे jyotimodi1977@gmail.com पे बात की जा सकती है.

ज्योति शोभा मूलतः दुमका, झारखण्ड से हैं. आपकी रचनाएँ ही आपकी पहचान हैं. आपसे jyotimodi1977@gmail.com पे बात की जा सकती है.

नवीनतम

मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो