मूरख है कालीघाट का पंडित
सोचता है
मंत्रोचार से और लाल पुष्पों से ढक लेगा पाप
नहीं फलेगा कुल गोत्र के बहाने कृशकाय देह का दुःख
मूरख है ममता बंदोपाध्याय का रसोइया
दुःख को सुंदर माछ की तरह रांधने का
प्रयास करता है
मूरख है धर्मतल्ला का व्यापारी
गरम चादर की तरह
नित ही
दुःख बेचकर ख़रीदता है दुःख
मूरख है विक्टोरिया का बूढ़ा कोचवान
हिनहिनाते हैं दूर दूर खड़े पशु तो
मात्र चारा पानी देता है उन्हें
कामदेव के बाण की तरह मूरख है संसार
द्वार पर आम-पत्र बाँधता है
नहीं जानता
उसी के सुसज्जित कुटुंब से निकला है दुःख जुलूस बन के
और सबसे मूरख हैं ये कवि
संसार के दुःख को भाषा से छलते हैं।

ज्योति शोभा
ज्योति शोभा मूलतः दुमका, झारखण्ड से हैं. आपकी रचनाएँ ही आपकी पहचान हैं. आपसे jyotimodi1977@gmail.com पे बात की जा सकती है.