दुनिया मेरी भैंस

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मैं अहीर हूँ
और ये दुनिया मेरी भैंस है
मैं उसे दुह रहा हूँ
और कुछ लोग कुदा रहे हैं
ये कउन (कौन) लोग हैं जो कुदा रहे हैं ?
आपको पता है.
क्यों कुदा रहे हैं?
ये भी पता है.
लेकिन एक बात का पता
न हमको है न आपको न उनको
कि इस कुदाने का क्या परिणाम होगा
हाँ …इतना तो मालूम है
कि नुकसान तो हर हाल में खैर
हमारा ही होगा
क्योंकि भैंस हमारी है
दुनिया हमारी है!

रमाशंकर यादव 'विद्रोही'

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' (3 दिसम्बर 1957 - 8 दिसंबर 2015) हिंदी के लोकप्रिय जनकवि हैं। प्रगतिशील परंपरा के इस कवि की रचनाओं का एकमात्र प्रकाशित संग्रह 'नई खेती' है। इसका प्रकाशन इनके जीवन के अंतिम दौर 2011 में हुआ। वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से जुड़े। यह जुड़ाव आजीवन बना रहा।

रमाशंकर यादव 'विद्रोही' (3 दिसम्बर 1957 - 8 दिसंबर 2015) हिंदी के लोकप्रिय जनकवि हैं। प्रगतिशील परंपरा के इस कवि की रचनाओं का एकमात्र प्रकाशित संग्रह 'नई खेती' है। इसका प्रकाशन इनके जीवन के अंतिम दौर 2011 में हुआ। वे स्नातकोत्तर छात्र के रूप में जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय से जुड़े। यह जुड़ाव आजीवन बना रहा।

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