बर्गे गुल के नाम

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एक लड़की,
उदास लड़की,
बला की उदास लड़की!
..
जिसके नाज़ुक होंटों से गिर पड़ती है
कोई रूमानी नज़्म,
बोलते हुए,
एक नज़्म ,
रूमानी नज़्म,
बला की रूमानी नज़्म!

जिसकी आंखों में हैं दो भूरे सूरज,
जिनसे रौशन है जहान,
दो आंखें,
एक जोड़ा सूरज,
सुर्ख़ आंखें, सुर्ख़ सूरज!
..
दायें रुख़सार पर दो तिल,
ज़मीन के दो मरकज़,
एक से दूसरे के दरमियान बसी है दुनिया ,
दो नामालूम स्याह ख़ूबसूरत जज़ीरे,
दो दुनिया ,
एक रूख़सार ,
दो दुनिया, दिलकश दुनिया!

लड़की !
बला की उदास लड़की,
उनींदी आंखों वाली,
..
रात की रानाईयां ज़ुल्फ़ों में समेटे हुए,
ग्रीक की पुरानी मूरत,
बदन की तराशों से झांकते,
अजंता के ज़माने,
लड़की !
और
बला की उदास !
..
पिघले लोहे से बने मरमरी शाने,
जिनसे बहती है शराबे नाब,
उंगलियों से छनती ख़ुशबुओं की ख़ुशबू ,
कांधे ,
ख़ुशबू
और बला की उदास लड़की,

जिससे मुझे मुहब्बत है,
उदास लड़की ,
बला की उदास लड़की…
उदास लड़की…

ज़ुबैर सैफ़ी
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ज़ुबैर सैफ़ी (जन्म - 2 मार्च 1993) बुलंदशहर, उत्तरप्रदेश से हैं. इन दिनों आप नया सवेरा वेब पोर्टल में सह संपादक के रूप में कार्यरत हैं. आपसे designerzubair03@gmail.com पे बात की जा सकती है.

ज़ुबैर सैफ़ी (जन्म - 2 मार्च 1993) बुलंदशहर, उत्तरप्रदेश से हैं. इन दिनों आप नया सवेरा वेब पोर्टल में सह संपादक के रूप में कार्यरत हैं. आपसे designerzubair03@gmail.com पे बात की जा सकती है.

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