सो रहेंगे कि जागते रहेंगे

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सो रहेंगे कि जागते रहेंगे
हम तिरे ख़्वाब देखते रहेंगे

तू
कहीं और ढूँढता रहेगा
हम कहीं और ही खिले रहेंगे

राहगीरों ने राबदलनी है
पेड़ अपनी जगह खड़े रहे हैं

बर्फ़ पिघलेगी और पहाड़ों में
सालहा-साल रास्ते रहेंगे

सभी मौसम हैं दस्तरस में तिरी
तू ने चाहा तो हम हरे रहेंगे

लौटना कब है तू ने पर तुझ को
आदतन ही पुकारते रहेंगे

तुझ को पाने में मसअला ये है
तुझ को खोने के वसवसे रहेंगे

तू इधर देख मुझ से बातें कर
यार चश्मे तो फूटते रहेंगे

तहज़ीब हाफ़ी

तहज़ीब हाफ़ी (जन्म - 5 दिसंबर, 1988) मूलतः पाकिस्तान से हैं और मौज़ूदा दौर के मशहूर शायरों में से एक हैं। आपने मेहरान यूनीवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनिरिंग करने के बाद बहावलपुर यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए किया है। आजकल आप लाहौर में रहते हैं।

तहज़ीब हाफ़ी (जन्म - 5 दिसंबर, 1988) मूलतः पाकिस्तान से हैं और मौज़ूदा दौर के मशहूर शायरों में से एक हैं। आपने मेहरान यूनीवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनिरिंग करने के बाद बहावलपुर यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए किया है। आजकल आप लाहौर में रहते हैं।

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