तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे

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तू किसी और ही दुनिया में मिली थी मुझसे
तू किसी और ही मौसम की महक लायी थी
डर रहा था कि कहीं ज़ख़्म भर जाएँ मेरे
और तू मुठ्ठीयाँ भर भर के नमक लायी थी
और ही तरह की आँखें थी तेरे चेहरे पर
तू किसी और सितारे से चमक लायी थी
तेरी आवाज़ ही सब कुछ थी मुझे मुन्हसिर जाँ
क्या करूँ मैं कि तू बोली ही बहुत कम मुझसे
तेरी चुप से ही यही महसूस किया था मैंने
जीत जायेगा तेरा ग़म किसी रोज़ मुझसे
शहर आवाज़ें लगाता था मगर तू चुप थी
ये ताल्लुक़ मुझे खाता था मगर तू चुप थी
वही अंज़ाम था जो इश्क़ का आगाज़ से है
तुझको पाया भी नहीं था के तुझे खोना था
चली आती है यही रस्म कई सदियों से
यही होता है , यही होगा, यही होना था
पूछता रहता था तुझसे किबता क्या दुख है?”
और मेरी आँख में आँसू भी नहीं होते थे
मैंने अंदाज़े लगाये कि सबब क्या होगा
पर मेरे तीर तराज़ू भी नहीं होते थे
जिसका डर था मुझे मालूम पड़ा लोगों से
फिर वो ख़ुशबख़्त पलट आया तेरी दुनिया में
जिसके जाने पे मुझे तुने जगह दी दिल में
मेरी किस्मत में ही जब ख़ाली जगह लिखी थी
तुझसे शिकवा भी अगर करता तो कैसे करता
मैं वो सब्ज़ा था जिसे रौंद दिया जाता है
मैं वो जंगल था जिसे काट दिया जाता है
मैं वो दर था जिसे दस्तक की कमी खाती है
मैं वो मंजिल था जहाँ टूटी सड़क जाती है
मैं वो घर था जिसे आबाद नहीं करता कोई
मैं तो वो था जिसे याद नहीं करता कोई
ख़ैर, इस बात को तू छोड़, बता कैसी है?
तूने चाहा था जिसे, वो तेरे नज़दीक तो है?
कौन से ग़म ने तुझे चाट लिया अंदर से
आज कल फिर से तू चुप रहती है, सब ठीक तो है?

तहज़ीब हाफ़ी
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तहज़ीब हाफ़ी (जन्म - 5 दिसंबर, 1988) मूलतः पाकिस्तान से हैं और मौज़ूदा दौर के मशहूर शायरों में से एक हैं। आपने मेहरान यूनीवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनिरिंग करने के बाद बहावलपुर यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए किया है। आजकल आप लाहौर में रहते हैं।

तहज़ीब हाफ़ी (जन्म - 5 दिसंबर, 1988) मूलतः पाकिस्तान से हैं और मौज़ूदा दौर के मशहूर शायरों में से एक हैं। आपने मेहरान यूनीवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनिरिंग करने के बाद बहावलपुर यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए किया है। आजकल आप लाहौर में रहते हैं।

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