क़दम रखता है जब रस्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता

1 min read

क़दम रखता है जब रस्तों पे यार आहिस्ता आहिस्ता
तो छट जाता है सब गर्द-ओ-ग़ुबार आहिस्ता आहिस्ता

भरी आँखों से हो के दिल में जाना सहल थोड़ी है
चढ़े दरियाओं को करते हैं पार आहिस्ता आहिस्ता

नज़र आता है तो यूँ देखता जाता हूँ मैं उस को
कि चल पड़ता है जैसे कारोबार आहिस्ता आहिस्ता

उधर कुछ औरतें दरवाज़ों पर दौड़ी हुई आईं
इधर घोड़ों से उतरे शहसवार आहिस्ता आहिस्ता

किसी दिन कारख़ाना-ए-ग़ज़ल में काम निकलेगा
पलट आएँगे सब बे-रोज़गार आहिस्ता आहिस्ता

तिरा पैकर ख़ुदा ने भी तो फ़ुर्सत में बनाया था
बनाएगा तिरे ज़ेवर सुनार आहिस्ता आहिस्ता

मिरी गोशा-नशीनी एक दिन बाज़ार देखेगी
ज़रूरत कर रही है बे-क़रार आहिस्ता आहिस्ता

तहज़ीब हाफ़ी

तहज़ीब हाफ़ी (जन्म - 5 दिसंबर, 1988) मूलतः पाकिस्तान से हैं और मौज़ूदा दौर के मशहूर शायरों में से एक हैं। आपने मेहरान यूनीवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनिरिंग करने के बाद बहावलपुर यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए किया है। आजकल आप लाहौर में रहते हैं।

तहज़ीब हाफ़ी (जन्म - 5 दिसंबर, 1988) मूलतः पाकिस्तान से हैं और मौज़ूदा दौर के मशहूर शायरों में से एक हैं। आपने मेहरान यूनीवर्सिटी से सॉफ्टवेयर इंजीनिरिंग करने के बाद बहावलपुर यूनीवर्सिटी से उर्दू में एम.ए किया है। आजकल आप लाहौर में रहते हैं।

नवीनतम

मेरे मन का ख़याल

कितना ख़याल रखा है मैंने अपनी देह का सजती-सँवरती हूँ कहीं मोटी न हो जाऊँ खाती

तब भी प्यार किया

मेरे बालों में रूसियाँ थीं तब भी उसने मुझे प्यार किया मेरी काँखों से आ रही

फूल झरे

फूल झरे जोगिन के द्वार हरी-हरी अँजुरी में भर-भर के प्रीत नई रात करे चाँद की

पाप

पाप करना पाप नहीं पाप की बात करना पाप है पाप करने वाले नहीं डरते पाप

तुमने छोड़ा शहर

तुम ने छोड़ा शहर धूप दुबली हुई पीलिया हो गया है अमलतास को बीच में जो