यह अधनंगी शाम और यह भटका हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। राजमार्ग—कोलाहल—पहिए काँटेदार रंग गहरे यंत्र-सभ्यता चूस-चूसकर फेंके गए अस्त चेहरे झाग उगलती खुली खिड़कियाँ सड़े गीत सँकरे
Moreलोग कहते हैं— उदास दिखना उदास होने से ज़्यादा ख़राब समझा जाता है। सो जाओ कि रात बहुत गहरी है और काली है। सो जाओ कि अब कोई उम्मीद नहीं जगाएगा तुम्हारे मन
Moreमैंने उसको जब-जब देखा लोहा देखा लोहे जैसा तपते देखा गलते देखा ढलते देखा मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा!
Moreदिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम मसलन बहुत सारे कठिन कामों में एक कठिन काम है नदियों की कलकल करती
Moreक्या करे समुद्र क्या करे इतने सारे नमक का कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं क्या पता कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं फिर भी
Moreएक बार और जाल फेंक रे मछेरे जाने किस मछली में बंधन की चाह हो! सपनों की ओस गूँथती कुश की नोक है हर दर्पण में उभरा एक दिवालोक है रेत के
Moreप्रेम में लड़की शोक करती है शोक में लड़की प्रेम करती है प्रेम में लड़की नाम रखती है नाम जिसका रखती है माया है वह माया, जिसकी इच्छा उसकी नींद में चलती
Moreयह व्यथा की बात कोई कहे या न कहे। सपने अपने झर जाने दे, झुलसाती लू को आने दो पर उस अक्षोभ्य तक केवल मलय समीर बहे। यह विदा का गीत कोई
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