एक पुराने दुःख ने पूछा

एक पुराने दुःख ने पुछा क्या तुम अभी वहीं रहते हो? उत्तर दिया, चले मत आना मैंने वो घर बदल दिया है जग ने मेरे सुख-पन्छी के पाँखों में पत्थर बांधे हैं

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जो प्यार में होते हैं

जो प्यार में होते हैं चाँद उनकी शाम में बिखरे पत्तों से निकलता है और उठकर खेतों में चला जाता है जो प्यार में होते हैं पूरी-पूरी रात गेहूँ की बालियाँ बीनते

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चिड़िया का ब्याह

चिड़िया की बारात नहीं आती चिड़िया पराई नहीं हो जाती चिड़िया का दहेज नहीं सजता चिड़िया को शर्म नहीं आती तो भी चिड़िया का ब्याह हो जाता है चिड़िया के ब्याह में

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इस बस्ती के इक कूचे में

इस बस्ती के इक कूचे में इक ‘इंशा’ नाम का दीवाना इक नार पे जान को हार गया मशहूर है उस का अफ़साना उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप

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भटका हुआ अकेलापन

यह अधनंगी शाम और यह भटका हुआ अकेलापन मैंने फिर घबराकर अपना शीशा तोड़ दिया। राजमार्ग—कोलाहल—पहिए काँटेदार रंग गहरे यंत्र-सभ्यता चूस-चूसकर फेंके गए अस्त चेहरे झाग उगलती खुली खिड़कियाँ सड़े गीत सँकरे

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क़रीब चालीस की उम्र में

लोग कहते हैं— उदास दिखना उदास होने से ज़्यादा ख़राब समझा जाता है। सो जाओ कि रात बहुत गहरी है और काली है। सो जाओ कि अब कोई उम्मीद नहीं जगाएगा तुम्हारे मन

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मैंने उसको

मैंने उसको जब-जब देखा लोहा देखा लोहे जैसा तपते देखा गलते देखा ढलते देखा मैंने उसको गोली जैसा चलते देखा!

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विदा

तुम चले जाओगे पर थोड़ा-सा यहाँ भी रह जाओगे जैसे रह जाती है पहली बारिश के बाद हवा में धरती की सोंधी-सी गंध भोर के उजास में थोड़ा-सा चंद्रमा खंडहर हो रहे

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कवि का काम

दिखने में जो अक्सर आसान से दिखते हैं एक कवि को करने होते हैं ऐसे कई पेचीदा काम मसलन बहुत सारे कठिन कामों में एक कठिन काम है नदियों की कलकल करती

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समुद्र पर हो रही है बारिश

क्या करे समुद्र क्या करे इतने सारे नमक का कितनी नदियाँ आईं और कहाँ खो गईं क्या पता कितनी भाप बनाकर उड़ा दीं इसका भी कोई हिसाब उसके पास नहीं फिर भी

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