नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं

नुमाइश के लिए गुलकारियाँ दोनों तरफ़ से हैं लड़ाई की मगर तैयारियाँ दोनों तरफ़ से हैं मुलाक़ातों पे हँसते, बोलते हैं, मुस्कराते हैं तबीयत में मगर बेज़ारियाँ दोनों तरफ़ से हैं खुले

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मेरी उमरा बीती जाए

सईउ नी मेरे गल लग रोवो नी मेरी उमरा बीती जाए उमरा दा रंग कच्चा पीला निस दिन फिट्टदा जाए सईउ नी मेरे गल लग्ग रोवो नी मेरी उमर बीती जाए ।

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ज़िलाधीश

तुम एक पिछड़े हुए वक़्ता हो तुम एक ऐसे विरोध की भाषा में बोलते हो जैसे राजाओं का विरोध कर रहे हो एक ऐसे समय की भाषा जब संसद का जन्म नहीं

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प्रेम इंटरनेट पर

शास्त्रीय प्रेमियों की तरह मनोयोगपूर्वक दबा नहीं सकता वह मेरा सर, गूँथ नहीं सकता मेरी चोटी, मटके में पानी भी भरवा नहीं सकता, हाँ, मल नहीं सकता भेंगरिया के पत्ते मेरी बिवाइयों

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हम जिएँ न जिएँ दोस्त

हम जिएँ न जिएँ दोस्त तुम जियो एक नौजवान की तरह, खेत में झूम रहे धान की तरह, मौत को मार रहे बान की तरह। हम जिएँ न जिएँ दोस्त तुम जियो

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फटा क्षण

एक फटे हुए क्षण में जूता सिलाने मैं चला सड़क चौड़ी थी पाँव पतले नंबर तीन वाले पेड़ सिकुड़ा खड़ा बूढ़ा बैठा जहाँ दिमाग़ में कुछ आता न था कमरा खुला दरियाँ

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रात सुनसान है

रात सुनसान है तारीक़ है दिल का आंगन आसमां पर कोई तारा न जमीं पर जुगनू टिमटिमाते हैं मेरी तरसी हुई आँखों में कुछ दीये तुम जिन्हें देखोगे तो कहोगे : आंसू

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अत्यंज कोरी पासी हैं हम

अंत्यज कोरी पासी हैं हम क्यूँ कर भारतवासी हैं हम अपने को क्यों वेद में खोजें क्या दर्पण विश्वासी हैं हम छाया भी छूना गर्हित है ऐसे सत्यानाशी हैं हम धर्म के

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दुःख से कैसा छल

मूरख है कालीघाट का पंडित सोचता है मंत्रोचार से और लाल पुष्पों से ढक लेगा पाप नहीं फलेगा कुल गोत्र के बहाने कृशकाय देह का दुःख मूरख है ममता बंदोपाध्याय का रसोइया

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धर्म बच जाए शायद

एक व्यक्ति के क़त्ल के बाद माँ रोती है पूरा अस्तित्व रोता है साथ में आदम और हव्वा रोते हैं अपने नस्लों के हश्र पर इन सबमें शामिल हैं ईश्वर के आंसू

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