कौन है ये गुल मकई?
डरती नहीं जो बंदूक़ों से
डटी रहती बेख़ौफ़
उनकी धमकियों के सामने
ढहा दिए सैकड़ों मदरसे जिन्होंने
उजाड़ दी स्वात घाटी
तबाह कर दी बेपनाह ख़ूबसूरती और शांति
निकाले फ़तवे
कि लड़कियों का पढ़ना हराम है
हराम है उनका साँस लेना खुली हवा में
क़दम क़दम पर बारूद की तरह बिछा
ख़ौफ़ शरीयत क़ानून का
कौन है ये गुल मकई?
जो पूरी घाटी में दौड़ती
इंक़लाबी आँधी की तरह
जो लड़कियों के लिए इल्म की
तालीम की बात करती
जो लड़कियों के हक़ के लिए लड़ती
कौन है, कौन है गुल मकई?
हर कोई हैरान है
साँप सूँघ गया हो
इस क़दर तालिबान है
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हेमंत देवलेकर
हेमंत देवलेकर (जन्म - 11 जुलाई 1972) कवि के साथ-साथ समर्थ रंगकर्मी भी हैं. उनका दूसरा कविता संग्रह ‘गुल मकई’ बोधि प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है.