एक व्यक्ति के क़त्ल के बाद
माँ रोती है
पूरा अस्तित्व रोता है
साथ में
आदम और हव्वा रोते हैं
अपने नस्लों के हश्र पर
इन सबमें शामिल हैं
ईश्वर के आंसू
और ईश्वर के रो पड़ने के बाद
कोई धर्म कहाँ बचता है
साबूत!
धर्म बच जाए शायद
यदि मीरा की तरह किसी अदृश्य वंशी की धुन से
थिरक उठें आपके पैर
कि आप बुद्ध की तरह
आंखें बंद कर लें
और देख सकें
मन के पार के सारे द्वार
और किसी दिन
बेचैन होकर
कबीर की तरह उठा ले खंजड़ी
और अलमस्त होकर गा सकें
मानवता के पक्ष में
व्यवस्था के विरुद्ध सबसे
क्रांतिकारी गीत
तो शायद बच जाए धर्म

जय प्रकाश
जय प्रकाश औरंगाबाद, बिहार से हैं और पेशे से अध्यापक हैं. आपसे Jps4582@gmail.com पे बात की जा सकती है.